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________________ थे। इनका निवास स्थान 'त्रांबावती' नगर (खंभात, गुजरात) था। यह नगर देशविदेश के व्यापार का केन्द्र और विशेषकर मोती आदि बहुमूल्य रत्नों के व्यापार का केन्द्र होने के कारण प्राचीनकाल से समृद्ध रहा है। यहीं पर जयरत्नमणि ने 'ज्वरपराजय' नामक वैद्यक-ग्रंथ की रचना की थी। ग्रन्थारभ मे उसने लिखा है-- 'यः 'श्वेतांबर' मौलिमण्डनमणि: सत्पूणिमापक्षवान्, यस्तास्तै वसतिः समृद्धन गरे 'त्र्यबावतीनामके । नत्वा 'श्रीगुरुभावरत्न चरणो' ज्ञानप्रकाशप्रदो, सद्बुद्ध्या 'जयरत्न' आरचति ग्रंथ भिषक्प्रीतये ।।6।।' ग्रन्थकार ने वैद्यक के अनेक मान्य ग्रथों का अध्ययन किया था। उनके आधार पर इस ग्रन्थ की रचना की थी। इनमें आत्रेय, चरक, सुश्रुत, भोज या भेल ड), वाग्भट, वृन्द, अंगद ?), नागसिंह, पाराशर, सोढल, हारीत, तीसट, माधव, पाल. काप्य आदि मुख्य हैं। इनका उल्लेख ग्रन्थकार ने ग्रन्थारम्भ में किया गया है 'आत्रेय च र कं सुश्रुत मथो भोज़ा भिधं : भेला भिध , वाग्भट, सद्वन्दाङ्गद-नागसिंहमतुलं पाराशरं सोड्ढलम् । हारीत तिसट च माधवमहाश्रीपालकाप्यादिकान्, सद्ग्रन्थानवलोक्य साधुविधिना चैतांस्तथाऽन्यानपि ।। ।।' इस ग्रन्थ के अन्त में इसका रचनाकाल वि. सं. 1662 भाद्रपद, शुक्ल 1 मगलवार दिया गया है 'श्री विक्रमाद् द्वि-रस-षट्-शशिवत्स रेषु । ।602 , यातेष्वथो नभसि मासि सिते च पक्षे । तिथ्यामथ प्रतिपदि क्षितिसूनुवासरे, ग्रन्थोऽचि 'ज्व• पराजय' एष तेन ।।437।।' लेखक वैद्यविद्या में निपुण और कुशल चिकित्सक था । इम ग्रन्थ में कुल 439 पद्य हैं। साहित्य संस्थान उदयपुर ग्रंथांक 485) वाली प्रति में 442 श्लोक हैं । इसमें विविध प्रकार के ज्वरों के निदान और चिकित्सा का विस्तार से वर्णन है। इसमें निम्न विषय आये हैं1. मंगलाचरण -- (श्लोक 1-7) देवदेव (ऋषभदेव ), नागवक्त्र, सरस्वती, धन्वन्तरि, ___ आयुर्वेद प्रणेता आचार्य, गुरू भाव रत्न के प्रति नमस्कार । 2. शिराप्रकरण-(श्लोक 8 -16) 3. दोष प्रकरण- (श्लोक 17-51) 4. ज्वरोत्पत्यादिप्रकरण-(52- 59)-ज्वरों की उत्पत्ति (निदान हेतु), भेद और लक्षण बताये हैं। 5. चिकित्सा हेतु देशादि का परीक्षण [ 120 ।
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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