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________________ चारु चन्द्रसूरि रुद्रपल्लीय (15वीं शती) इनका काल बि. 15वीं शती है। इन का लिखा 'वातशितम्' नामक वैद्यक ग्रन्थ बताया जाता है। इसका उल्लेख 'पुगतत्त्व' वर्ष 2, पृ. 418 पर हुआ है। श्रीकण्ठसूरि (16वीं शती) यह जैन आचार्य थे । इनका 'हितोपदेश' या 'वैद्यकसारसंग्रह' ग्रन्थ है। यह - वकटेश्वर प्रेस, बंबई से छप चुका है । ग्रन्थ के प्रारंभ में नाभिराज के पुत्र ऋषभदेव का स्माण किया गया है । रोगी लोगों के हित के लिए इस ग्रन्थ का उपदेश किया गया है अत: इसे 'हितोपदेश' नाम दिया है “हिताय रुग्भिः परिपड़ितानां हितोपदेशं कथयामि कञ्चिद् ।" इसमें 10 समुद्देशों में समस्त रोगों की चिकित्सा का वर्णन है । कुष्ठ रोग में सूर्य की स्तुति दी है । शीतला की चिकित्सा (8/47-49) का भी उल्लेख है। छोटी माता रोग का उल्लेख 'गोवर' 8/46) नाम से हुआ है। वृद्धि रोग को 'कुरण्ड' कहा गया है (7/1-15) । गृध्रसीवात को रिंगिणीवात' (7/85) नाम दिया है । स्नायुक को 'बालो' (7187) इत्यादि प्रादेशिक रोगनामों का उल्लेख है। चिकित्सा प्रयोग उपयोगी एवं व्यवहारिक है । श्रीकण्ठसूरि (पण्डित का काल 16वीं शती है। हितोपदेश के प्रत्येक उद्देश्य के अन्त में लिखा है - "इति श्रीपरमजैनाचार्यश्रीकण्ठसूरिविरचिते हितोपदेशे वैद्यकसारसंग्रहे................समुद्देश ।" श्रीकण्ठशंभु नामक परमशैवाचार्य की 'वैद्यकसारसंग्रह' कोई भिन्न कृति है। पूर्णसेन (16वीं शती) यह जैन विद्वान् था। इसने 'वररुचि' कृत 'योगशतक' पर संस्कृत-टीका लिखी थी। टीका के प्रारम्भ में वर्धमान और समंतभद्र को नमस्कार किया है "श्रीवर्द्धमानं प्रणिपत्य 'सामंतभद्राय' जनाय हेतोः । श्रीपूर्णसेनैः' सुखबोधनार्थं प्रारभ्यते योगशतस्य टीका ।।।।। अथ जीवा अनादिनिधनास्तेषां जीवानामाहारवातशीतातपवर्षाविषमासननिद्रादिभिर्व्याधय उत्पद्यते, तेषां व्याधीनां प्रकारा ये पुरा 'सर्वज्ञभाषिता' स्तेभ्यो वैद्यशास्त्रस्य सारं गृहीत्वा 'योगशतं' कर्तु कामो 'वररुचिः' शास्त्रादौ प्रतिज्ञां करोति ।" 'सर्वज्ञभाषिताः' से तात्पर्य है 'आदिनाथ ऋषभदेव द्वारा कथित'। जैन परम्परा में रोगों सम्बन्धी ज्ञान ऋषभदेव से सर्वप्रथम अपने समवसरण में दिया था, ऐसा माना जाता है । इस टीकारंभ से वररुचि का भी जैन होना प्रमाणित होता है। वररुचि का काल अज्ञात है। इसकी हस्तप्रति भांडारकर ओ. रि. इं. पूना में विद्यमान हैं (ग्रंथांक 185,' [ 107 ]
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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