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________________ इन्होंने वंशपरिचय इस प्रकार दिया है-चंगदेव का पुत्र हरदेव, हरदेव का नागदेव, नागदेव के दो पुत्र हुए-हेम और राम। ये दोनों ही अच्छे 'वैद्य' थे। राम का पुत्र प्रियंकर, प्रियंकर का मल्लुगित और मल्लुगित का नागदेव हुआ। . इसी नागदेव ने 'मदनपराजय' की रचना की है। हरदेव ने पहले 'मदनपराजय' की रचना अपभ्रंश के पद्धडिया और रड्ढा छंदों में की थी। उसी का संस्कृत अनुवाद कुछ संशोधन-परिवर्धन पूर्वक अनेक छंदों में नागदेव ने किया । इस वंश के 'नागदेव' और उसके दोनोंपुत्रों' (हेम और राम) को विद्वान् भिषक् (चिकित्सक) बताया गया है । ग्रन्थ के अन्त में 'इति श्रीठक्कूर माइन्दसूत-जिनदेवविरचिते स्मरपराजये' ऐसी पुष्पिका मिलती है । इससे ग्रन्थकार का सम्बन्ध स्पष्ट नहीं होता । यह खंड-रूपक काव्य है । ग्रन्थ की कथावस्तु इस प्रकार है । राजा कामदेव, मोह मंत्री और अहंकार, अज्ञान आदि सेनापतियों के साथ भावनगर में राज्य करते हैं। चारित्रपुर के राजा जिन राज उनके शत्रु हैं, जो मुक्तिरूपी कन्या से पाणिग्रहण करना चाहते हैं । कामदेव ने राग-द्वेष नामक दूतों के साथ राजा जिन राज के पास संदेश भेजा कि या तो वे मुक्तिरूपी कन्या से विवाह का विचार त्याग दें और अपने सुभट प्रधान दर्शन, ज्ञान, चारित्र को मुझे सौपदें, वरना युद्ध के लिए तैयार हो जायें। जिनराज से कामदेव का युद्ध होता है और कामदेव को पराजित होना पड़ता है । इस ग्रन्थ की सं. 1573 की हस्तप्रति मौजूद है, अतः इसका रचनाकाल 14वीं-15वीं शती होना चाहिए। 1 मारिणक्यचंद्र जैन (14-15वीं शती) ___ इनके द्वारा र'चत 'रसावतार' नामक रससंबंधी ग्रंथ मिलता है। इसकी हस्त• लिखित प्रति वैद्य यादव जी त्रिकमजी आचार्य के पास है । भाडारकर ओरियंटल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पूना के ग्रन्थागार में ग्रन्थांक 37 (1882-83) पर 'रसावतार' ग्रन्थ मौजूद है। यह प्रति देवनागरी में है, कहीं-कहीं पृष्ठमात्राएं भी अंकित हैं। अतः इस प्रति का काल बहुत प्राचीन है, संभवतः 14-15वीं शती होना चाहिए। ग्रन्थ में 108 पत्र हैं। अतः विस्तृत रचना है । इसमें लेखक का नाम नहीं दिया है। अनूप संस्कृत लाइब्रेरी, बीकानेर के राजेन्द्रलाल मित्रा के केटलॉग में ग्रन्थाक 143। पर भी 'रसावतार' का उल्लेख है। मुगल बादशाह शाहजहां के काल में हुए कवीन्द्राचार्य (17वीं शती पूर्वार्ध) की सूची में भी 'रसावतार' का उल्लेख है। टोडरानन्द (आयुर्वेद सौख्य) (काल 16वीं शती) में भी 'रसावतार' को उद्धृत किया गया है । अतः रसावतार का रचना काल 14वीं 15वीं शती प्रमाणित होता है । 1 जैन ग्रन्थप्रशस्ति संग्रह, भाग 1, पृ. 37, 76 । [ 106 ]
SR No.022687
Book TitleJain Aayurved Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendraprakash Bhatnagar
PublisherSurya Prakashan Samsthan
Publication Year1984
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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