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________________ = प्रस्तावना। = २१ वें तीर्थंकर श्री नमिनाथसे लेकर २४ वें तीर्थकर भगवान् श्री महावीर तथा उनके समकालीन तथा बाद के सुप्रसिद्ध जैनाचार्य और जैन सम्राटोंका कोई ऐसः पयुक्त इतिहास आजतक प्रगट नहीं हुआ है, जो विद्यार्थियोंको पढ़ानेम सुगम हो तथा सामान्य पढ़ेलिखे भाइयोंको भी स्वाध्यापयोगी हो। अत: हमने यह 'प्रा० जैन इतिहास तीसरा भाग' नामक पुस्तक पं० मूलचन्दजी जैन वत्सल विद्यारत्न ( दमोह ) से प्राचीन शास्त्रोंके आधारसे तैयार कराई है। तथा साथमें वीरके सुयोग्य सं० बा० कामताप्रसादजी रचित पांच आचार्योंके चरित्र भी उपयोगी होनेसे इसमें संनिलित किये हैं। इस पुस्तककी रचना ऐसी सुगम व संक्षिप्त की गई है कि सामान्य पढ़ा लिखा हरकोई भाई या बहिन इसको समझ सकेगा। हम मं० मूलचन्द्रजी वत्सलके बड़े आभारी हैं जिन्होंने इस पुस्तककी रचना कर दी है। साथमें प्रसिद्ध इतिहासज्ञ बाबू कामताप्रसादनीकी साहित्य सेवाको भी हम भूल नहीं सकते। दि. जैन समाजपर भापका उपकार अवर्णनीय है। ___इस ऐतिहासिक ग्रन्थका सुलभतया प्रचार हो इसलिये यह "दिगम्बर जैन के ३२ वें वर्षके ग्राहकोंको भेटमें देने की व्यवस्था की गई है तथा कुछ प्रतियां विक्रयार्थ मी निकाली गई हैं । आशा है इस प्रथमावृत्तिका शीघ्र ही प्रचार हो जायगा। .... निवेदकसुरत, वीर ४६५ । ... मूलचन्द किसनदास कापड़िया, ज्येष्ठ सुदी १५ । प्रकाशक । ता. १-६-३९.
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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