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________________ [ ४ ] और यह बाठवां ग्रन्थ-प्राचीन जैन इतिहास तीसरा भाग प्रकट करके " दिगम्बर जैन " के ३२ वें वर्षके ग्राहकोंको मेट चांटा जा रहा है । तथा कुछ प्रतियां विक्रयार्थ भी निकाली गई हैं । यदि जैन समाज के श्रीमान शास्त्रदानका महत्व समझें तो ऐसी कई स्मारक ग्रन्थमालाऐं दिगम्बर जैन समाजमें निकल सकती हैं। ( जैसा कि श्वेताम्बर जैन समाजमें लाखों रु० के दानकी हैं लेकिन इसके लिये सिर्फ दानकी दिशा बदलने की आवश्यकता है; क्योंकि दिगम्बर जैन समाजमें दान तो बहुत निकाला जाता है जो या तो अपनी बहियोंमें पड़ा रहता है या मान बड़ाई के लिये धर्मके नामसे खर्च किया जाता है। अतः अब तो जैन समाज समयुकी मको समझें और शास्त्रदानकी तरफ अपना लक्ष्य फेरें यही मावश्यक है । - प्रकाशक ।
SR No.022685
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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