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________________ ७४ ७५ ७५ ७५ ७६ ८ १ ८३ ८४ ૮૪ ८९ ९० ९१ ५ ૧૧ ९६ ९९ १२ ७ १३ २ ૧ર ૨૧ ६ ९१ १२ ९२ 3 ५ ९२ ૪ ९२ ९३ ९४ ९६ ९६ ९६ ९६ ९६ १५ ૫ ૨૧ 1 ७ ૧૩ १६ ૨૨ ૧૬ ४ उधि "" पगमुख कुचेष्टाओ बहु स० शत्र (७) इस पर. इन्द्रके साथ युद्ध पुत्र ये सुना जनककि चटकेगा भटमंडल जनक के परांग मुख हो लनकी दुर्लभ्य उजनी जिन प्रतिमाको नम स्कार करता था " पराङ्मुख कुचेष्टाओं को इस पृष्ठ में कई स्थानपर 'भट मंडल' शब्द छपा है उसकी जगह ' भामंडल ' शब्द होना चाहिये भट मंडलको तब भामंडलको विधुदङ्ग बाल्याखिल्ल बहुत सशस्त्र इस प्रकार इन्द्रके साथ किये हुये युद्ध पुत्र थे सुना कि जनक चढ़ावेगा भामंडल जनक ने बाल्यवस्था बाल्यावस्था सगला सफला मूर्तिको सजला सफला भुमिको हे है पराङ्मुख करने के उनकी उज्जयिनी जिन प्रतिमा बनवा ली थी जिससे कि प्रणाम करते समय जिन प्रति माको नमस्कार हो विद्युदङ्ग बाल्यखिल्ल
SR No.022684
Book TitlePrachin Jain Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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