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________________ ६२ बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन व्यवस्था थी।१०६ उत्तराध्ययन टीका में हुतवह नाम की रथ्या का उल्लेख है। यह रथ्या गर्मी के दिनों में इतनी अधिक तपती थी कि कोई वहाँ से जाने का साहस नहीं करता था। फिर भी मार्गों की दशा सन्तोषजनक प्रतीत नहीं होती। ये मार्ग जंगलों, रेगिस्तानों और पहाड़ियों में से होकर जाते थे, इसलिए यहाँ घोर वर्षा, चोर-लुटेरे, दुष्ट हाथी, शेर आदि जंगली जानवर, राज्य-अवरोध, अग्नि, राक्षस, गड्ढे, सूखा, दुष्काल, जहरीले वृक्ष आदि का भय बना रहता था।१०७ 'बृहत्कल्पभाष्य' में 'दगण' नामक यान का उल्लेख है।०८ गाड़ी या छकड़ों (सगड़ी सागड़) को यातायात के उपयोग में लिया जाता था। गाड़ियों, घोड़ों, नावों और जहाजों द्वारा माल एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता था।१०९ अन्तर्देशीय व्यापार 'बृहत्कल्पभाष्य' ११० से पता चलता है कि देश के अन्दर व्यापार स्थल और जल दोनों मार्गों से होते थे। आनन्दपुर (वडनगर, उत्तरगुजरात) और दशार्णपुर (एरछा जिला झांसी) ये दो स्थलपट्टण थे जहाँ स्थलमार्ग से माल ले जाया जाता था।१११ भृगुकच्छ (भड़ौच) और ताम्रलिप्त (तामलुक) द्रोणमुख थे जहाँ जल और स्थल दोनों मार्गों से व्यापार होता था।११२ जहाँ उक्त दोनों ही प्रकार के माल के आने-जाने की सुविधा न हो, उसे कब्बड़ कहा गया है। वर्षा काल में लोग व्यापार के लिए नहीं जाते थे।११३ 'मथुरा' उत्तरापथ का महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र था जहाँ लोग व्यापार से ही जीवन-निर्वाह करते थे, खेतीबारी यहाँ नहीं होती थी।११४ यहाँ के लोग व्यापार के लिए दक्षिण मथुरा (मदुरा) तक आते जाते थे।११५ ___'शारक' (सोप्पारय सोपारा, जिला ठाणा) व्यापार का दूसरा केन्द्र था। यहाँ बहुत से व्यापारियों (नेगम) के रहने का उल्लेख है।११६ भृगुकच्छ और सुवर्णभूमि (वर्मा) के साथ इनका व्यापार चलता था।११७ ।। ___'उज्जैन' व्यापार का दूसरा बड़ा केन्द्र था। धनवसु यहाँ का सुप्रसिद्ध व्यापारी था, जिसने अपने सार्थ के साथ व्यापार के लिए प्रस्थान किया था। उज्जैनी के व्यापारी पारसकुल (ईरान) भी आते जाते थे। राजा प्रद्योत के जमाने में उज्जैनी में आठ बड़ी-बड़ी दुकानें (कुत्रिकापण, पालि साहित्य में अन्तरापण) थीं जहाँ प्रत्येक वस्तु मोल मिलती थी।११८ चीन से विविध प्रकार के वस्त्र आते थे। आपणगृह के चारों ओर दुकानें बनी रहती थीं।११९ अन्तरापण के एक ओर या दोनों ओर बाजार की बीथियाँ रहती थीं।१२०
SR No.022680
Book TitleBruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrapratap Sinh
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages146
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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