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________________ आर्थिक जीवन हाथियों और चोरों का आतंक था।२८ 'वसुदेवहिण्डी' से ज्ञात होता है कि स्थलमार्ग से यात्री चीन, तिब्बत, ईरान, और अरब देशों तक जाते थे। चारुदत्त अपने मित्र रुद्रदत्त के साथ नदी के संगम के उत्तरपूर्व दिशा में हूण, खस और चीन देश गया था।९९ जलमार्ग व्यापारिक दृष्टि से जल मार्गों का बड़ा महत्त्व था। देश की नदियाँ प्रमुख व्यापारिक नगरों को जोड़ती थीं। उत्तराध्ययन से ज्ञात होता है कि चम्पा से एक जलमार्ग पिहुंड तक जाता था।०० 'वसुदेवहिण्डी' से ज्ञात होता है कि चारुदत्त समुद्री मार्ग से चीन गया था और लौटते हुए स्वर्णभूमि, कमलपुर, यवनद्वीप, सिंहलद्वीप और बब्बरयवण होता हुआ सौराष्ट्र पहुंचा था।३०१ लेकिन 'बृहत्कल्पभाष्य' में समुद्र यात्रा के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिलती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि कठोर आचार-संहिता के कारण जैन साधु समुद्र यात्रा नहीं करते थे। लेकिन नदियों से व्यापार अवश्य होता था। 'बृहत्कल्पभाष्य में गंगा, यमुना, सरयू, कोशिका, मही आदि महानदियों को तथा ऐरावती आदि कम गहरी नदियों को पार करने का उल्लेख है।०२ नदी पार करने के लिए संक्रम, स्थल और नोस्थल इस प्रकार तीन तरह के मार्ग भी बताये गये हैं।१०३ नदी और समुद्र के व्यापारी नदियों में नावों द्वारा माल ढोया जाता था। नदी तट पर उतरने के लिए स्थान बने हुए थे। नावों को अगट्ठिाय अन्तरंडकगोलिया (जोगी), कोचवीरग (जलयान)१०४ आदि नामों से सूचित किया गया है। 'निशीथभाष्य' में चार प्रकार की नावों का उल्लेख है- 'अनुलोमगामिनी,' 'प्रतिलोमगामिनी,' 'तिरिच्छसंतारिणी, (एक किनारे से दूसरे किनारे पर सरल रूप में जाने वाली) और 'समुद्रगामिनी'। समुद्रगामिनी नाव से लोग तेयालगपट्टण (आधुनिक वेरावल) से द्वारका की यात्रा किया करते थे।१०५ यान-वाहन व्यापार और उद्योग-धन्धों के विकास के लिए शीघ्रगामी और सस्ते आवागमन के साधनों का होना परम आवश्यक है। जैनसूत्रों में (शृंगाटक (सिंघाटक), त्रि (तिग), चतुष्क (चउक्क; चौक), चत्वर (चच्चर), महापथ और राजमार्ग का उल्लेख है जिससे पता लगता है कि उन दिनों भी मार्ग की
SR No.022680
Book TitleBruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrapratap Sinh
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages146
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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