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________________ ३८ बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन करें। वे किनारी (दसा) वाले वस्त्र भी धारण नहीं कर सकते थे। उनके लिए विधान है कि थूणा (थानेश्वर) में अभिन्न (अखण्ड) वस्त्र पहनना चाहिए, लेकिन किनारी काटकर ही।१५० आवश्यकता पड़ने पर तालाचर (नट, नर्तक आदि), देवछत्रधारी, वणिक, स्कन्धावार, सैन्य, संवर्त (चोरों के भय से) किसी नायक के नेतृत्व में जहाँ बहुत से ग्राम हों, लाकुटिक, गोकुलवासी, सेवक, जामाता और पथिकों से वस्त्र ग्रहण करने का विधान है। ये लोग नये वस्त्र लेकर पुराने वस्त्रों को श्रमणों को दे देते थे।१५१ वस्त्रों के विभाग करने की विधि बताई गई है। पासा डालकर भी वस्त्रों का विभाजन किया जाता था।१५२ 'बृहत्कल्पभाष्य' में पट्ट का उल्लेख है जो एक चिपटा वस्त्र होता था। इसे धागों से कसकर बांध दिया जाता था और कमर को ढकने के लिए यह काफी था। यह चौड़ाई में चार अंगुल स्त्री के कटिप्रमाण होता है। इससे उग्गहणंतग के दोनों छोर ढक जाते हैं। कटि में इसे बांधा जाता है और आकार में यह जांघिये की भांति होता है। भगन्दर और अर्श (ववासीर), इत्यादि से पीड़ित होने पर यह विशेष उपयोगी होता था।१५३ । _'बृहत्कल्पभाष्य' में कपड़ों को विविध रंगों से रंगने, सुगन्धित पदार्थों से सुवासित करने और स्वर्ण तारों से सज्जित करने का उल्लेख भी हुआ है।१५४ समाज में सभी वर्गों के स्त्री-पुरुष समान्यतः आभूषणों से अपने को अलंकृत करते थे। आभूषण सोने-चाँदी मणि-मुक्ताओं और रत्नों से बनाये जाते थे।१५५ शरीर को सजाने संवारने के लिये विविध प्रकार के सौन्दर्य प्रसाधनों का उपयोग किया जाता था। 'बृहत्कल्पभाष्य' और 'आचारांग' से सूचित होता है कि चन्दन, कर्पूर और लोध्र के विलेपनों और उवटनों से शरीर को सुन्दर बनाया जाता था।२५६ पैरों को आच्छादित करने के लिये उपानह (जूतों) का उपयोग किया जाता था। भाष्यकाल तथा चूर्णिकाल में चमड़े की भाँति-भाँति के सुन्दर जूते पहने जाते थे।१५७ 'बृहत्कल्पभाष्य' में उल्लेख है कि जब जैन श्रमण यात्रा पर हों, बीमार हों, जिनके पैर मुलायम हों, जंगली जानवरों का भय हो, जो कुष्ठ रोग या अर्श से पीड़ित हों तो वे जूते पहन सकते हैं।१५८ 'निशीथचूर्णि' से ज्ञात होता है कि स्त्री-पुरुष पाँच रंग के सुगन्धित पुष्पों की मालाएँ धारण करते थे।१५९ पर्वो तथा उत्सवों के अवसर पर फूलों की बड़ी आवश्यकता पड़ती थी इसलिये फूलमालाओं का मूल्य बढ़ जाता था।१६०
SR No.022680
Book TitleBruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrapratap Sinh
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages146
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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