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________________ सामाजिक जीवन ३७ (तन्तुवायशाला) में कपड़ा बुना जाता था। नालंदा के बाहर इस प्रकार की एक शाला में ज्ञातृपुत्र महावीर और मंखलिपुत्र गोशाल साथ-साथ रहे थे।१३५ 'बृहत्कल्पभाष्य' में पाँच प्रकार के दूष्य वस्त्र बताये गये हैं- (कोयव)१३६ (रूई का वस्त्र), पावारग-प्रावरक१३७ (कम्बर), दाढ़िआलि१३८ (दाँतों की पंक्ति के समान श्वेत वस्त्र), पूरिका९३९ (टाट आदि जो मोटे कपड़े से बुनी गयी हो) और विरलिका ४० (दूसरे सूत से बुना हुआ वस्त्र जैसे दुलई आदि)।१४१ गंडोपधान (गालों पर रखने के तकिये), और मसूरक (चर्म-वस्त्र से बने हुए गोल रुई के गद्दे) का भी उल्लेख है।१४२ चेलचिलमिणि१४३ एक प्रकार की यवनिका (कनाट) थी जो जैन साधुओं के उपयोग में आती थी।१४४ यह पाँच प्रकार की बतायी गयी है- सूत की बनी हुई (सुत्तमई), रस्सी की बनी हुई (रज्जुमई), वृक्षों की छाल की बनी हुई (कडगमई)आदि। यह कनात पाँच हाथ लम्बी और तीन हाथ चौड़ी होती थी।१४५ औजार एवं उपकरण उस समय लोग तरह-तरह के उपकरण प्रयोग में लाते थे। 'बृहत्कल्पभाष्य' में कुछ उपकरणों के नाम दिये हुए हैं- तालिका (जूते की तल्ली फटकर बिवाई फटने पर उपयोग में आने वाला पदार्थ), वर्ध (जूते सीने के काम में आने वाला औजार), कोशक (नखभंग की रक्षा के लिए अंगस्ताना), कृत्ति (रापी), सिक्कक (छींके के समान कोई उपकरण), कपोतिका (जिसमें बालसाधु आदि को बैठाकर ले जाया जा सके), पिप्पलक (छुरी), सूची (सूई), आरिका, नखार्चनी (नहरनी), औषध, नन्दी भाजन, धर्मकरक (पानी आदि छानने के लिए छनना), गुटिका आदि१४६ शल्यक्रिया में प्रयोग होने वाले उपकरण बाक्स सत्थकोस का भी उल्लेख है।१४७ अलंकार स्त्रियाँ आभूषणों की सदा से शौकीन रही हैं। वे सोने-चांदी के विविध आभूषण धारण करती थीं। जिससे सुनारों (सुवण्णकारों) का व्यापार खूब चलता था। 'बृहत्कल्पभाष्य' में अनंगसेन नामक एक ऐसे ही स्वर्णकार का उल्लेख हुआ है।१४८ 'बृहत्कल्पभाष्य' में सूई का उल्लेख भी है।१४९ वस्त्र धारण करने के भी संकेत मिलते हैं। जैन साधुओं के लिए निर्देश है कि वे रंगे हुए वस्त्र धारण न
SR No.022680
Book TitleBruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrapratap Sinh
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages146
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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