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________________ २६ बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन स्त्रियों की स्थिति प्राचीन भारतीय सामाजिक व्यवस्था में स्त्रियोंका महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। उन्हें विवाह, शिक्षा सम्पत्ति आदि में अधिकार प्राप्त थे। कन्या के रूप में, पत्नी के रूप में तथा माँ के रूप में वे हिन्दू परिवार और समाज में आदृत थीं। परिवार और समुदाय में उनके द्वारा कन्या, पत्नी, वधू और माँ के रूप में किये जाने वाले योगदान का सर्वदा महत्त्व और गौरव रहा है। भारतीय धर्मशास्त्र में नारी सर्व-शक्ति-सम्पन्न मानी गई तथा विद्या, शील, ममता, यश और सम्पत्ति की प्रतीक समझी गई।३४ 'जैनसूत्रों में भी कहा गया है कि जब कन्या पैदा होती है तो पिता के अधीन रहती है, जब उसका विवाह हो जाता है तो पति के अधीन हो जाती है, और जब विधवा होती है तो पुत्र के अधीन हो जाती है- तात्पर्य यह कि नारी स्वतंत्र नहीं रह सकती थी।३५ 'बृहत्कल्पभाष्य' से भी नारी के बारे में महत्त्वपूर्ण सूचना मिलती है। कोई वधू अपने घर की खिड़की में बैठी-बैठी नगर की सुन्दर वस्तुएँ देखा करती थी। कभी वह कोई जुलूस देखती, तो कभी इधरउधर भागते हुए घोड़े या रथ से होनेवाली हलचल देखती। धीरे-धीरे पर-पुरुषों में उसकी रुचि होने लगी। यह देखकर उसके श्वसुर ने उसे रोका, पर वह नहीं मानी। उसकी निन्दा की, फिर भी कोई असर न हुआ। तत्पश्चात् कोड़े से पीटी गयी, फिर भी न मानी। यह देखकर अन्त में घर से निकाल दिया गया।३६ प्रस्तुत ग्रन्थ में उस समय श्रमणों की अपेक्षा श्रमणियों पर ज्यादा अंकुश था क्योंकि 'बृहत्कल्पभाष्य' में स्त्रियों को दृष्टिवाद सूत्र पढ़ने का निषेध किया गया है। इसका कारण यह है कि स्त्री स्वभाव से दुर्बल, अहंकार बहुल, चंचल-इन्द्रिय और मानस से दुर्बल होती है, अतएव महापरिज्ञा, अरुणोपपात आदि और दृष्टिवाद पठन करने का उसे निषेध है।३७ 'जैनसूत्रों' में उल्लेख है कि तीन वर्ष की पर्यायवाला निर्ग्रन्थ तीस वर्ष की पर्यायवाली श्रमणी का उपाध्याय तथा पाँच वर्ष की पर्यायवाला निर्ग्रन्थ साठ वर्ष की पर्यायवाली श्रमणी का आचार्य हो सकता है। उस समय स्त्रियों की समाज में सम्मानजनक स्थिति थी। स्त्रियों को चौदह रत्नों में गिना गया है।३८ मल्लिकुमारी ने स्त्री होकर भी तीर्थंकर की पदवी प्राप्त की।३९ बृहत्कल्पभाष्य में भी कहा गया है कि जल, अग्नि, चोर अथवा दुष्काल का संकट उपस्थित होने पर सर्वप्रथम स्त्री की रक्षा करनी चाहिए। इसी प्रकार डूबते समय भिक्षु-भिक्षुणी में से पहले भिक्षुणी को और क्षुल्लक-क्षुल्लिका में से पहले क्षुल्लिका को बचाना चाहिए।४१
SR No.022680
Book TitleBruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrapratap Sinh
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages146
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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