SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन विवाह के प्रकार जैनसूत्रों में विवाह के तीन प्रकार का उल्लेख मिलता है- वर और कन्या दोनों पक्षों के माता-पिताओं द्वारा आयोजित विवाह, स्वयंवर विवाह तथा गान्धर्व विवाह।२५ प्रथम प्रकार के विवाह माता-पिता द्वारा आयोजित किये जाते थे। यही आर्य विवाह प्रचलन में रहा होगा। स्वयंवर विवाह इस प्रकार के विवाह में कन्या अपने पसन्द वर का स्वयं चुनाव करती थी। राजे-महाराजे ही अपनी कन्याओं के लिए स्वयंवर रचाते थे। सम्भवतः मध्यम वर्ग के लोगों में स्वयंवर की प्रथा नहीं थी। निम्न वर्ग के लोगों में यह प्रथा अवश्य थी। उदाहरण के लिए, तोसलि देश में एक व्याघरणशाला थी। यह शाला गाँव के बीचोबीच बनी थी। इसके मध्य में एक अग्निकुण्ड स्थापित किया जाता था, जिसमें अग्नि हमेशा जलती रहती थी। इस शाला में एक स्वयंवरा दासचेटी और बहुत से दासचेटक प्रवेश करते थे, और जिस चेटक को कन्या पसन्द कर लेती, उसी के साथ उसका विवाह हो जाता था।२६ गान्धर्व विवाह इस विवाह में वर और कन्या अपने मन पसन्द का चुनाव कर लेते थे और बिना अपने माता-पिता की अनुमति के एवं बिना ही किसी धार्मिक विधिविधान के शादी कर लेते थे। 'बृहत्कल्पभाष्य' में एक ऐसे ही शादी का उल्लेख है जिसमें बलदेव निसढ के पुत्र सागरचंद्र और राजकुमारी कमलामेला में नारद जी ने एक-दूसरे के प्रति आकर्षण उत्पन्न कर दिया। कमलामेला नागसेन को दी जा चुकी थी, लेकिन वह सागरचंद से प्रेम करने लगी। सागरचंद ने शंब से किसी तरह उसे प्राप्त करने का अनुरोध किया। उसने प्रद्युम्न से प्रज्ञप्तिविद्या ग्रहण की और उसके विवाह के दिन उसका हरण कर लाया।२७ 'बृहत्कल्पभाष्य' में भाई-बहन की शादी के भी उल्लेख मिलते हैं। उज्जैनी का गर्दभ नाम का युवराज अपनी बहन अडोलिया पर आसक्त हो गया और अपने अमात्य दीर्घपृष्ठ के सुझाव पर, भूमिगृह में उसके साथ रहने लगा। गोल्ल देश में इस प्रकार के विवाह का प्रचलन था।२८ जैनों के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के समय विवाह की यह प्रथा प्रचलित बतायी गयी है। स्वयं ऋषभदेव ने अपनी बहन सुमंगला के साथ विवाह किया था। इसी प्रकार उनके पुत्र भरत और बाहुबलि का विवाह ब्राह्मी और सुन्दरी नाम की उनकी बहनों के साथ हुआ था।२९
SR No.022680
Book TitleBruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrapratap Sinh
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages146
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy