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________________ १२८ बृहत्कल्पसूत्रभाष्य : एक सांस्कृतिक अध्ययन सुलभता होती है। विवाह के बारे में केवल स्वयंवर और गान्धर्व विवाह का उल्लेख प्राप्त होता है। बृहत्कल्पभाष्य में भाई-बहन के विवाह का भी उल्लेख मिलता है। गोल्म देश में इस तरह के विवाह का प्रचलन था। उस समय नारी की स्थिति संतोषजनक थी परन्तु उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त नहीं थी। कभी-कभी वह परपुरुष के साथ भाग जाती थी। इसी प्रकार जैन साधुओं की अपेक्षा साध्वियों पर कठोर नियम लागू किये गये थे। उस समय दास-प्रथा का प्रचलन मौजूद था लेकिन दास-दासी प्रायः परिवार के साथ ही रहते थे। ग्रन्थ के अनुसार ऋणग्रस्त होने पर लोगों को दासवृत्ति स्वीकार करनी पड़ती थी। ऐसे व्यक्ति को श्रमणदीक्षा का निषेध किया गया है। उस समय लोग अन्न, फल, दूध, मांस, मदिरा आदि का सेवन करते थे। प्रस्तुत ग्रंथ में विभिन्न प्रकार के पकवानों का उल्लेख है जिनमें पुलाक विशिष्ट प्रकार का पकवान होता था। उसके तीन प्रकार भी बतलाये गये हैं- धान्यपुलाक, गंधपुलाक और रसपुलाक। ग्रन्थ निमित्त शास्त्र पर भी प्रकाश डालता है। उस समय जादू-टोना आदि में लोगों का विश्वास था। इनके माध्यम से लोग अपने अनेक कार्य सम्पन्न करते थे। मंत्रविद्या से अश्व उत्पादन का उल्लेख प्राप्त होता है। साधु-साध्वियों के वस्त्र, उपकरण आदि के साथ ही सामान्य जन के वस्त्रों की भी प्रस्तुत ग्रंथ में विस्तार से चर्चा है। उस समय के लोग अनेक प्रकार से आमोद-प्रमोद और मनबहलाव किया करते थे। मह, छण (क्षण), उत्सव, यज्ञ, पर्व, गोष्ठी, प्रमोद और संखडि आदि ऐसे कितने ही उत्सव और त्योहार थे जहाँ लोग जी-भरकर आनन्द लेते थे। ऐसे अवसरों पर तरह-तरह के व्यंजन भी बनाये जाते थे। धार्मिक उत्सवों में पर्व का सबसे अधिक महत्त्व था। बृहत्कल्पसूत्रभाष्य में चिकित्सा पद्धति का सुंदर चित्रण किया गया है जिसमें आठ प्रकार के वैद्यों का नामोल्लेख मिलता है- (१) संविग्न (२) असंविग्न, (३) लिंगी, (४) श्रावक (५) संज्ञी (६) अनभिगृहीत असंज्ञी (मिथ्या-दृष्टि), (७) अभिगृहीत असंज्ञी (८) परतीर्थिक। असाध्य रोगों के साथ-साथ सामान्य जीवन निर्वाह के नियमों का निवारण करने हेतु औषधि एवं चिकित्सा की व्यवस्था थी। इसमें रोग नाशक औषधि और शल्यक्रिया से सम्बन्धित औषधि प्रयोग किये जाते थे। चिकित्सक को वैद्य कहा जाता था। तत्कालीन आर्थिक व्यवस्था सुदृढ़ थी। कृषि उत्पादन तथा पशुपालन को प्राथमिक उत्पादन माना जाता था। कृषक कृषि कार्य करने में निपुण होते थे।
SR No.022680
Book TitleBruhat Kalpsutra Bhashya Ek Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrapratap Sinh
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages146
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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