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________________ ( ८ ) शिकार बन गया और अव्यस्थित चित्त होकर अपने को भूल गया, इसके बाद एक क्षण में आँखें बंद हो गई और मूच्छित होकर राजा सिंहासन से गिर पड़ा, हाहाकार करते हुए सब खड़े हो गए, पंखे से हवा करने लगे और शीतल जल से सींचने लगे, राजा के मुँह में कर्पूर देते हैं, अंगों का मर्दन करते हैं, यह देखकर चित्र - सेन अत्यंत प्रसन्न हो जाता है, अरे ? अरे ? यह पापी की न है जो साक्षात काल के रूप में आया है, कामन कर के हमारे स्वामी को मोहित कर लिया है, मारो, पकड़ो यह कहते हुए अंगरक्षकों ने उसे पकड़ लिया, तब चित्रकार ने कहा कि भद्रपुरुष ? मैं दुष्ट नहीं हूँ, आप व्यर्थ मेरी दुर्दशा क्यों करते हैं ? अंगरक्षकों ने कहा कि यदि तू दुष्ट नहीं है तो कामन किया चित्र तूने राजा को क्यों बताया ? उनके मूच्छित होने पर तू प्रसन्न वदन क्यों हो गया, इनका वध करने के लिए तुझ पापी को यहाँ किसने भेजा ? उसने कहा कि मैं राजा के अभ्युदय के लिए आया हूँ, फिर भी राज पुरुषों ने उसे बाँध लिया, इतने में राजा की मूर्च्छा टूट गई और वह स्वस्थ हो गया, फिर राजा ने चित्रकार को छोड़ देने के लिए कहा, जब चित्रसेन को बंधन मुक्त कर दिया गया तब राजा ने कहा कि भद्र ? बैठो और सच सच बताओ कि तुम को यहाँ किसने भेजा ? तब चित्रसेन ने कहा, राजन् ? मैं चित्रकार वेश में जिस कारण से यहाँ आया हूँ उसका रहस्य आप सुनिए -- , कुशाग्रपुर नाम का एक नगर है जो नगर के गुणों से युक्त है, और धन-धान्य समृद्ध मानवों से परिपूर्ण है, याचकजनों की आशा को पूर्ण करनेवाला धनवाहन नाम का एक राजा है, वसंतसेना उनकी प्राणप्रिया रानी है, उनके नरवाहन नाम का परम
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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