SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ७ ) के समान अमरकेतु नाम का राजा राज्य करता है, त्रिवर्गसार राज्यश्री का सम्यक् प्रकार से अनुभव करते हुए उस राजा के दिन स्वर्ग में इंद्र की तरह आनंदपूर्वक बीतते हैं । चरण-कमल का इसके बाद किसी समय राजसभा में बैठे हुए राजा के पास आकर बंधुल नाम का द्वारपाल विनय से मस्तक झुकाकर इस प्रकार बोलता है कि देव ? कुशाग्रपुर से चित्रकला में अत्यंत कुशल चित्रसेन नाम का एक चित्रकार आया है, आपके पवित्र दर्शनाभिलाषी है, वह राजसभा में आना चाहना है, ऐसी स्थिति में आपका आदेश ही प्रमाण है, राजा के आदेश से उसने सभा में प्रवेश किया और राजा को अभिवादन कर के उचित स्थान पर बैठ गया । राजा ने पूछा, भद्र ? तुम कौन हो ? और किस प्रयोजन से यहाँ आए हो ? उसने कहा, " राजन ? मैं कुशाग्रपुर से आया हूँ, चित्रकला अच्छा जानता हूँ, लोगों से सुना कि आप चित्र के बड़े प्रेमी हैं, अत: अपनी चित्रकला को बताने के लिए आपके पास आया हूँ,' राजा ने उससे अपना श्रेष्ठ चित्र दिखलाने को कहा, उसने बगल में छिपाए चित्र - पट राजा को समर्पित कर दिया, राजा उस चित्रपट में लिखे अनेक वर्णों से शोभायमान, प्रमाणोपेत रेखाओं से विशुद्ध वनयौवना एक कन्या के रूप को देखता है, देखते ही रोमांचित हो जाता है, सोचता है कि तीन लोक में ऐसी सुंदर स्त्री हो नहीं सकती है, इसने अपनी चित्रकला की निपुणता बताने के लिए ऐसा सुंदर चित्र बनाया है, यदि कहीं भी ऐसे सुंदर स्वरूपवाली कन्या हो तो उसके साथ सम्बंध करने में ही मेरे राज्य की सफलता है, इस प्रकार चिन्तन करता हुआ वह कामदेव के बाण का -
SR No.022679
Book TitleSursundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1970
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy