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________________ . संमूर्छिम मनुष्य : आगमिक और पारंपरिक सत्य प्रारंभ से ही जिस पदार्थ की सिद्धि एकमात्र आगम से ही शक्य हो वैसे आगमवाद के विषय को यानी कि आज्ञाग्राह्य पदार्थ को भी आगमानुसारी हेतु से ग्राह्य बता कर हेतुवाद का विषय बना सकते हैं - वैसा महोपाध्यायजी महाराज ने स्याद्वादकल्पलता के दूसरे स्तबक में बताया है। ये रहे उनके शब्द :- यद्यपि अतीन्द्रियार्थे पूर्वम् आगमस्य प्रमाणान्तराऽनधिगतवस्तुप्रतिपादकत्वेन अहेतुवादत्वम्, तथापि अग्रे तदुपजीव्य प्रमाणप्रवृत्तौ हेतुवादत्वेऽपि न व्यवस्थाऽनुपपत्तिः, आद्यदशापेक्षयैव व्यवस्थाभिधानात् । (शा.वा.समु. २/२३ वृत्ति) धर्मास्तिकाय वगैरह आज्ञाग्राह्य पदार्थ को संमतितर्कादि दर्शनशास्त्रों में हेतु द्वारा सिद्ध करने का प्रयास अत एव उचित गिना गया है। परंतु धर्मास्तिकाय आदि अतीन्द्रिय पदार्थों के खंडन के लिए तर्क-हेतु-अनुमान वगैरह का उपयोग अवश्य निंदनीय ही बनता है। संक्षेप में, आगमिक पदार्थों के पीछे पीछे युक्ति का अनुसरण मान्य है। एवं उस युक्ति के पीछे-पीछे अपने मन का अनुसरण उचित है। यही बात ज्ञानसार में इस तरह बताई है: मनोवत्सो युक्तिगवीं मध्यस्थस्याऽनुधावति । तामाकर्षति पुच्छेन तुच्छाग्रहमनःकपिः ॥१६/२॥ इसलिए, अत्र प्रदर्शित तर्क और आगम मूल परंपरा कि जो आज्ञाग्राह्य है - उसे केन्द्र में रख कर पेश किए गए हैं। उसका मूल्यांकन भी तथैव ही कर्तव्य है। प्राज्ञपुरुषों को बिनती करता हूँ 11
SR No.022666
Book TitleSamurchhim Manushuya Agamik Aur Paramparik Satya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijaysuri, Jaysundarsuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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