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________________ संमूर्च्छिम मनुष्य : आगमिक और पारंपरिक सत्य ६२ ६३ ६६ ६९ ७० ७१ ७३ ७४ ७६ ७९ ८० ८१ ८२ ८२ ८५ ८८ ८९ ९० ९१ ९२ ९६ ९७ ९९ घटीमात्रक सूत्र का स्पष्टीकरण. बृहत्कल्पसूत्र संमूर्च्छिम मनुष्य की विराधना से बचने की अनेकविध यतनाएँ आचारांग सूत्र का गर्भितार्थ .... आचारांग सूत्र का नवनीत परोसते विचारमंथन पादलेखनिका द्वारा 'गलत मान्यता' का अवलेखन आचारांग सूत्र का पाठ बाधक नहीं, प्रत्युत साधक. तीन-तीन मल्लुक रखने की बात की स्पष्टता श्लेष्ममल्लक से संमूर्च्छिम मनुष्य की विराधना संभवित होने की सिद्धि के आधार पर रहस्योद्घाटन श्लेष्म मल्लक की बात से परंपरा की प्रबल पुष्टि ॐ रामलालजी महाराज के विधान से ही परंपरा को पुष्टि मृतदेह की बात का विश्लेषण मात्रक को स्थापित रखने के पीछे परंपरा की प्रसिद्धि संमूर्च्छिम मनुष्य योनिध्वंस विचारणा * संमूर्च्छिम मनुष्य की विराधना अवश्यंभावी कृमि विचार समीक्षा संमूर्च्छिम मनुष्य की विराधना से बचने हेतु अन्य यतना आचमनयतना क्षारादि यतना का हार्द उष्णादि योनि वाले तर्क की समालोचना. मोक प्रतिमा से परंपरा की ही सिद्धि. संमूर्च्छिम मनुष्य की कायिक विराधना होती है : तथ्य संमूर्च्छिम मनुष्य की विराधना में प्रायश्चित्त का उपदेश व्यवहार सूत्र में प्रायश्चित्त का उल्लेख में प्रायश्चित्त प्रदर्शन बृहत्कल्पसूत्र निशीथसूत्रभाष्य के आधार पर प्रायश्चित्त प्रतिपादन आगमिक संदर्भों से सिद्ध होने वाला तथ्य अवधातव्यम् प्राचीन परंपरा को ओर एक सलामी रामलालजी महाराज की परंपरा क्या थी ? प्राचीन प्रामाणिक परंपरा का अपलाप न करें उपसंहार १०० १०० १०१ १०३ १०४ १०४ १०६ १०७ १०७ 9
SR No.022666
Book TitleSamurchhim Manushuya Agamik Aur Paramparik Satya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijaysuri, Jaysundarsuri
PublisherDivyadarshan Trust
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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