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________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी साधूनामिति विधि वन्दनाद्यर्थधर्मस्थाने नोक्तदोषः। -जिनालय में भी साधुओं को तीन स्तुति बोलने से अधिक रुकने की अनुज्ञा नहीं। इसलिए विधि-वंदनादि के लिए रुकने में उपरोक्त दोष नहीं। लेखक श्रीजयानंदविजयजी ने 'सत्यकी खोज' पुस्तक के नूतन संस्करण के पृष्ठ-६३ पर प्रश्न-७३ के उत्तरमें प्रतिमाशतक गाथा-२६ की टीका का उपरोक्त पाठ रखकर त्रिस्तुतिक मत को सिद्ध करनेका प्रयास किया है। परन्तु यह असत्य है। लेखकने उनकी पुस्तकमें पृष्ठ-६३ पर निम्नानुसार प्रश्नोत्तरीकी है। "क्या प्रतिमाशतक में तीन स्तुति का निरुपणा है ? हां गाथा नं-२की टीका में अत्र स्तवः स्तवनं स्तुतिः स्तुतित्रयं प्रसिद्धं । यहां तीन स्तुतिका विधान किया है। गाथा-२६मी टीकामें 'न च देवगृहेऽपि स्तुतित्रयकर्षणात्परतोऽवस्थानमनुज्ञातं साधुनामिति।' यहां पर भी तीन स्तुति करे वहां तक ही जिनमंदिरमें साधुओं को रहेना का विधान किया है। परिशिष्टमें विवेचन देखें।" समीक्षा : मुनिश्री जयानंदविजयजी की उपरोक्त बात असत्य है। क्योंकि, १. मुनिश्री प्रतिमाशतक की गाथा-२की टीका ‘अत्र स्तवः स्तवनं स्तुतिः स्तुतित्रयं प्रसिद्धम्' इस पाठ के आधार पर त्रिस्तुतिक मत का समर्थन करते हैं। जो असत्य हैं । ग्रंथकार परमर्षिने यह पाठ त्रिस्तुतिक के समर्थन के लिए नहीं दिया और न ही चतुर्थस्तुति की अविहितता के लिए दिया है। यह बात पूर्व में विस्तार से प्रस्तुत की गई है। २. प्रतिमाशतक की गाथा-२६की टीका का उपरोक्त 'न च.... साधुनामिति' का पाठ व्यवहारभाष्य की 'तिन्निवा' गाथा के आधार पर साधुओं को जिनमंदिर में अधिक समय तक नहीं रुकने के लिए
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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