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________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी मुनिश्री इसमें कर्मनिर्जरा का उद्देश्य नहीं होता, ऐसा जो कहते हैं वह उनकी कदाग्रह दशा की सूचक है। एक भूल होने के बाद उसे सुधारने की आंतरिक भावना न हो, तो एक भूल अनेक भूलें कराती है, यह बात सुनी थी, अब मुनिश्रीकी पुस्तकको देखकर वह बात सिद्ध होते देख रहे हैं। ___'जिसमें कर्मक्षय का उद्देश्य हो वह भावानुष्ठान और जिसमें कर्मक्षयका उद्देश्य न हो वह द्रव्यानुष्ठान' - ऐसी व्याख्या किस शास्त्रमें है ? मुनिश्री जयानंदविजयजी उस शास्त्र का नाम बताएं और उस शास्त्र का वह पाठ भी प्रस्तुत करें। ___कर्मक्षय के उद्देश्यपूर्वक ही अनुष्ठान करता है, फिर भी साधक अभिन्न ग्रंथिक ( सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं किया, किन्तु उसके सन्मुख) है, तब उस साधकका अनुष्ठान द्रव्यानुष्ठान होता है। ___'कर्मक्षय के उद्देश्यपूर्वक ही अनुष्ठान करता है, फिर भी साधक अभिन्न ग्रंथिक (सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं किया, किन्तु सम्यग्दर्शन के सन्मुख) है। तथा देश अथवा सर्व चारित्र के परिणाम को प्राप्त नहीं करता, तब उसका अनुष्ठान द्रव्यानुष्ठान कहलाता है। कर्मक्षय के उद्देश्यपूर्वक अनुष्ठान करनेवाला साधक भिन्न ग्रंथिक (सम्यग्दर्शन प्राप्त हो) तथा चारित्र के परिणाम को प्राप्त करनेवाला हो, तब उसका अनुष्ठान भावानुष्ठान कहलाता है। ___सक्षिप्त में ते ते गुणस्थानक की परिणति को प्राप्त करनेवाले साधक का गुणस्थानक सम्बन्धी अनुष्ठान भावानुष्ठान कहलाता है और ते ते गुणस्थानक की परिणति को प्राप्त नहीं कर सका है, किन्तु वह पाने की सच्ची दिशा में आगे बढ़ रहा हो, तब ते ते गुणस्थानक सम्बंधी अनुष्ठान द्रव्यानुष्ठान कहलाता है। शास्त्रों में द्रव्यानुष्ठान-भावानुष्ठान की ऐसी व्याख्या की गई हैं। मुनिश्रीने
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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