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________________ ८० त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी नहीं होता, यह शास्त्रविरोधी हैं और महापुरुषों के निर्मल आशयों की आशातना है। त्रिस्तुतिक मत के लेखकों ने अनुष्ठान के भेद करके जबरदस्त दंभ का प्रदर्शन किया है। क्योंकि, अपनी मान्यता शास्त्र सापेक्ष है, यह दर्शाने के लिए जहां-जहां देव-देवीकी सहायता लेने की बात आई, वहां-वहां उसे काल्पनिक द्रव्यानुष्टान में खपाकर जैसे वे शास्त्रों के वफादार हैं ऐसा दिखावा किया है। शास्त्रों के विरोधी होने के बावजूद हम शास्त्रों के वफादार हैं, वह दर्शाना निरीह आडम्बर हैं दंभ ही हैं। 'द्रव्यानुष्ठान में कर्मक्षय का उद्देश्य नहीं होता।' ऐसा जैनशासनको जाननेवाला सामान्य व्यक्ति भी नहीं कह सकता।फिर भी मुनिश्री ने ऐसा लिखा है, यह बिल्कुल शास्त्रविरोधी है। ___-क्या दीक्षामें कर्मक्षयका उद्देश्य नहीं ? कर्मक्षय का उद्देश्य नहीं तो क्या उद्देश्य है? -क्या प्रतिष्ठाकी क्रिया में कर्मक्षय के उद्देश्य के बजाय मान-सन्मान प्राप्त करनेकी लालसा होती है? ___ -दीक्षादि प्रत्येक क्रिया कर्मक्षय के लिए ही करने का विधान है और इसलिए की जानेवाली दीक्षादि प्रत्येक क्रियामें देव-देवी के कायोत्सर्ग व स्तुति बोलनी ही होती है। इसके अलावा अनेक शास्त्रवचनों के सामने आंख-मिचौली करके उसे द्रव्यक्रिया कहना, यह कितना बड़ा दुःसाहस है? यह पाठकगण सोचें और उन्मार्ग से बचें। ये सभी अनुष्ठान कर्मक्षय के उद्देश्य से करने को शास्त्र कहता हैं। श्री दश वैकालिक सूत्रमें तप एवं श्रमण जीवन के सभी आचारोंका कर्मनिर्जरा के अलावा अन्य किसी भी उद्देश्य से पालन करने का इनकार किया गया है। एक मात्र कर्मनिर्जरा के उद्देश्य से ही करने को कहा गया है। फिर भी
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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