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________________ ५८ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी मनः प्रणिधान पूर्वक स्मरण साधना में मदद करता है। इन उदाहरणों में से कुछ उदाहरणों में अपनी समाधि के लिए सहायता मांगी गई है। कुछ स्थलों पर अन्य की समाधि के लिए सहायता मांगी गई है। जहां सांसारिक पदार्थ मांगे गए है, वहां अविरति की भूमिका है।इन में आगम अथवा अन्य शास्त्रों की सहमति नहीं है। आगम तथा अन्य शास्त्रोंने मात्र अवसर प्राप्त जानकारी के रुप में उल्लेख किया है। जैसे महावीर परमात्मा के जीवन चरित्रमें त्रिशला माता के शयनखंड का भी वर्णन आता है, उससे ऐसा अर्थ नहीं निकलता कि, प्रत्येक गृहस्थोंको भी वैसा ही शयनखंड बनाना चाहिए। चरित्रों में जो वर्णन आता है, उसमें जो व्रतपोषक, सदाचारपोषक हो, वह करणीय होता है और शेष करणीय नहीं होता। ___ लेखकश्री ने पृष्ठ-७९ पर अंतिम पेरेग्राफ में द्रव्य एवं भाव ऐसे मिथ्या एवं काल्पनिक भेद करके माहपुरुषों के उदाहरणों को विकृत ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है वह बिलकुल असत्य है। (इसका खंडन आगे विस्तार से किया गया है उसे देखें।) मुनिश्री जयानंदविजयजी की दोनों ( तीनों) पुस्तकों की प्रत्येक लाइन की समीक्षा की जा सकती है। उनकी लेखन शैली जैनशासनके समक्ष बड़ी चुनौती समान है।सत्य सिद्धांतोके विरुद्ध है।सत्य के नाम से, स्याद्वाद के नाम से असत्य एवं मिश्रणवाद का पोषण करने का काम किया है। परन्तु लेखन सीमा तथा पाठकों की पढने एवं स्मरण रखने की सीमा के कारण कितना लिखा जा सकता है? 'सत्य की खोज' पुस्तक के पृष्ठ-८० पर प्रश्न-३२४ के उत्तर में मुनिश्री जयानंदविजयजीने अन्य लेखकों के नाम से... 'भक्तवर्ग एकत्र करने के लिए दैवी सहायता मांगना शुरु हुआ, मंत्र
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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