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________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी ५७ सहायता मांगी, वे आशय आगम में लिखे हैं, जो पढे हों तो भी अपनी मान्यता में प्रतिबंधक होने के कारण अपनी पुस्तक में उनका उल्लेख नहीं किया। इसके स्थान पर लेखक ने इन भव्यात्माओं की आशातना हो ऐसे शब्दों का प्रयोग किया है। देव-देवी से कर्मक्षय एवं मोक्ष नहीं मांगना चाहिए, बल्कि भौतिक सुख मांगे जाते है, ऐसे शास्त्रविरोधी अंतरंग में पड़े, मलीन आशय (कि जो उनकी दोनों पुस्तकों में जगह-जगह देखने को मिलते हैं) उन्हीं महापुरुषों के उदाहरण लेकर सिद्ध करते हुए पृष्ठ-७९ पर लिखते हैं कि, ____ “अगर इसे गहराई से सोचें तो स्पष्ट समझ में आयेगा कि उन्होंने सांसारिक भौतिक कार्योके लिए देव को प्रत्यक्ष करने हेतु अट्ठम तप आदि किया है। कोई भी दृष्टान्त कर्मक्षय के निमित्त से देव की याचना का नहीं है।" • उपरोक्त लेख में लेखकश्री ने महापुरुषोंके आशय की भयंकर आशातना की है। शास्त्रवचनों का गलत अर्थघटन किया है। अपनी मान्यता की पुष्टि करने का प्रयत्न किया है। इसलिए कहीं भी शास्त्र सापेक्षता नहीं रही है। आगममें तीन प्रकार के विधान होते हैं। १.विधि प्रतिपादक विधान २.अनुवाद परक विधान ३. फल प्रतिपादक विधान फल प्रतिपादक सभी विधान करणीय नहीं होते। मात्र उनमें ते ते कार्य का फल बताया होता है। विधि प्रतिपादक सभी विधान करणीय होता हैं। अनुवाद परक विधान जानकारियों का संपादन करता हैं। आगममें और चैत्यवंदन महाभाष्य आदि में भरत चक्रवर्ती आदि महानुभावों के उदाहरण देकर मात्र इतना ही कहा है कि, सम्यग्दृष्टि देव-देवी का
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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