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________________ ४२ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी योग्यता होने के बावजूद निमित्त कारण सामग्री मिले तब ही कार्य की उत्पत्ति होती है। जैसे कि, घड़ा बनाना हो तो मिट्टी में घड़ा बनने की योग्यता होने के बाबजूद कुम्हार, चक्र, दंड, डोरी आदि सहयोगी (निमित्त) कारण की सामग्री भी घड़ा बनाने में आवश्यक है। इसी प्रकार भव्यात्मा में समाधि तथा बोधिलाभ की योग्यता होने के बावजूद उसकी प्राप्तिमें आनेवाले विघ्नों के समूह को दूर करने की जरुरत है। (जो भव्यजीव सोपक्रम कर्म के उदयवाले हों उन जीवों के) विघ्नों को दूर करने की सम्यग्दृष्टि देवताओं में शक्ति है। श्री मेतार्य मुनिवर को पूर्वभव के मित्र देवने जैसे सहायता की थी, उसी प्रकार यहां भी समझना है और उसी प्रकार उसी अपेक्षा से सम्यग्दृष्टि देवों से की जानेवाली प्रार्थना सफल मानी जाती है। शंका : देवोंसे समाधि एवं बोधिलाभ के लिए प्रार्थना करें और उसी प्रकार देवों का सन्मान करें, यह क्या सम्यक्त्व की मलीनता का कारण नहीं? समाधान : सम्यग्दृष्टि देवों से जो प्रार्थना की जाती है, वह मोक्ष सुख देने की अपेक्षा से नहीं की जाती बल्कि मोक्षप्राप्ति के लिए जो धर्मध्यान किया जाता है। उस धर्मध्यानमें आनेवाले विघ्नों को दूर करने की अपेक्षा से की जाती है। और इस प्रकार देवों से प्रार्थना करने में सम्यक्त्व की मलीनता आदि कोई दोष लगनेकी संभावना नहीं होती । पूर्व के श्रुतधर परमर्षियोंने इसी प्रकार का आचरण किया है तथा आगममें भी इसी प्रकार प्रार्थना करने की बात कही गई है। श्री आवश्यकचूर्णिमें श्री वज्रस्वामीजीके चरित्र में कहा गया है कि... 'श्री वज्रस्वामीजी महाराजा निकटस्थ एक पर्वत पर गए और क्षेत्र (देवता)का कायोत्सर्ग किया। क्षेत्रदेवताने भी उपस्थित होकर (बोले कि मुझ पर बड़ा) अनुग्रह-उपकार किया, (आप सुखपूर्वक यहां बिराजें ऐसी) अनुज्ञा प्रदान की आदि।' आवश्यक सूत्र के कायोत्सर्ग अध्ययन की नियुक्ति में कहा गया
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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