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________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी ४१ (इस प्रकार) परभव में जिनधर्म की प्राप्ति स्वरुप बोधि मुझे प्राप्त हो। ऐसी भी प्रार्थना करनी है। अर्थात् हे सम्यग्दृष्टि देव! मुझे समाधि एवं बोधि प्रदान करें । ऐसी भावना आत्मकल्याण चाहनेवाला आत्मा की होती है । (क्योंकि, आत्मकल्याण चाहनेवाले जीवों के हृदय में ऐसी भावना रमती है कि,) 'श्रावक के घरमें सम्यग्ज्ञान व सम्यग्दर्शन सहित दासत्व ( भावांतर में ) मुझे प्राप्त हो मैं उसे उत्तम मानता हूं। परन्तु मिथ्यात्व से मोहित है मति जिसकी ऐसा चक्रवर्ती-राजपाट मुझे स्वीकार्य नहीं।' शंका : श्रावक सम्यग्दृष्टि देवों से समाधि तथा बोधि की प्रार्थना करते हैं । तो क्या सम्यग्दृष्टि देवता समाधि एवं बोधि देने के लिए समर्थ भी हैं अथवा नहीं? यदि ये सम्यग्दृष्टि देवता समाधि-बोधि देने में समर्थ नहीं तो फिर उनसे प्रार्थना करना निरर्थक है। __और यदि ये सम्यग्दृष्टि देवता समाधि-बोधि देने में समर्थ हैं, तो वे अभव्य तथा दुर्भव्य को क्यों समाधि नहीं देते? __यदि ऐसा कहेंगे कि, जो योग्य जीव होते हैं, उन्हें ही सम्यग्दृष्टि देवता समाधि-बोधि देने में समर्थ होते हैं, अयोग्य अभव्य-दुर्भव्य जीवों को देने में नहीं। तो फिर समाधि-बोधि की प्राप्ति में योग्यता ही प्रमाणभूत है अर्थात् योग्यता ही कारण है। बकरी के गले के आंचल समान देवों के समक्ष प्रार्थना करने की क्या जरुरत है? समाधान : सभी जगह योग्यता ही प्रमाण है-मुख्य कारण है, परन्तु विचार करने में असमर्थ (अर्थात् शास्त्र एवं युक्ति से अयोग्य) नियतिवादी आदि जैसे हम एकांतवादी नहीं । परन्तु नैगमादि सभी नयों के समूह रुप अनेकांतवाद को माननेवाले अनेकांतवादी हैं। (अर्थात् हमारा सर्वकथन अनेकांत के आधार पर होता है, एकांतवाद के आधार पर नहीं) और इसलिए इसी अपेक्षा से वस्तुमें
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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