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________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी * व्यवहार भाष्यकी नीचे दी गई गाथा के आधार पर मानते हैं। तिन्निवा.. ॥७३॥ (गाथा पूर्व में दर्शायी जा चुकी है।) साधुओं को मुख्यतया श्रुतस्तव (पुक्खरवरदीवड्डे ।) के बाद सिद्धाणं बुद्धाणं के तीन श्लोक प्रमाण तीन स्तुति कही जाएं, तब तक जिनमंदिर में रहने की आज्ञा है। यदि विशेष कारण हो तो अधिक समय भी रहने की आज्ञा है। वही लेखक मु.श्री जयानंदविजयजी अपनी 'सत्यकी खोज' पुस्तक के पृष्ठ-८८ पर उपरोक्त प्रश्नोत्तरी में 'तिन्निवा' गाथा का अर्थ अलग लिखते हैं। "साधुओं को मुख्यता तीन श्लोक प्रमाण तीन स्तुतियां करने तक ही जिनमंदिरमें रुकने की आज्ञा है। यदि विशेष कारण हो तो अधिक भी रुकने की आज्ञा है।" लेखक मुनि श्री जयानंदविजयजी ने 'तिन्निवा' गाथाका जो अर्थघटन किया है और अपने मत के आधार में वह गाथा दी है, वह पूर्वोक्त चर्चा से असत्य सिद्ध होती है, यह पाठक स्वयमेव समझ जाएंगे। 'अंधकार से प्रकाश की ओर' पुस्तक के पृष्ठ-२३ पर लिखी प्रश्नोत्तरी हमारे उपरोक्त प्रश्नोत्तर से तथा प्रस्तुत किए गए पाठों से स्पष्ट रुप से असत्य सिद्ध होती है। लेखक मुनि श्री जयानंदविजयजी ने सत्य की खोज' पुस्तककी नूतन आवृत्ति में; कि जिसमें अन्य असंगत चर्चा प्रस्तुत की है, उसमें प्रथम संस्करण के अनुसार अर्थघटन किया है, यह अर्थघटन भी असत्य है। लेखक मुनि श्रीजयानंदविजयजीने उपरोक्त प्रश्न के उत्तरमें चतुर्थ स्तुतिको अर्वाचीन नूतन कहा है। इसकी चर्चा आगे करेंगे। परन्तु उनकी दोनों पुस्तकों में एक बात द्रष्टिमें आती है कि, उन्होंने वादीवेताल पू.आ.भ.श्री शांतिसूरिजी म.सा. द्वारा विरचित
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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