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________________ १८० त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी शास्त्रो में सुना जाता है कि शासनदेवों ने श्रीकांता, मनोरमा, सुभद्रा एवं अभय आदि का सान्निध्य किया था । (प्रकट होकर सहायता की थी । ) संघुस्सग्गा पायं, वड्ढइ सामत्थमिह सुराणं पि । जह सीमंधरमूले, गमणे माहिलविवायम्मि ॥७८४॥ भावार्थ : शासनदेव को उद्देशित करके संघ द्वारा किए गए कायोत्सर्ग से शासनदेवों का भी सामर्थ्य बढता है । जैसे कि, गोष्ठामाहिल के विवादमें श्रीसीमंधरस्वामी के पास जाने में संघने कायोत्सर्ग किया था और इससे शासनदेवी की शक्ति बढी थी। (७८४) जक्खाए वा सुव्वइ, सीमंधरसामिपायमूलम्मि । नयणं देवीए कयं, काउस्सग्गेण सेसाणं ॥ ७८५ ॥ भावार्थ : तथा शेष (यक्षा साध्वीजी के अतिरिक्त अन्य) श्रावक आदि द्वारा किए गए कायोत्सर्ग से देवी यक्षा साध्वीजी को श्री सीमंधरस्वामी के पास ले गई, ऐसा शास्त्रमें सुना जाता है। (७८५) एवमाइकारणेहिं, साहम्मियसुरवराण वच्छलं । पुव्वपुरिसेहिं कीरइ, न वंदणाहेउमुस्सग्गो ॥७८६ ॥ भावार्थ : इत्यादि कारणों से पूर्वपुरुषों द्वारा साधर्मिक उत्तम देवों का वात्सल्य किया जाता है। वंदन के लिए कायोत्सर्ग नहीं किया जाता है। (७८६) पुव्वपुरिसाण मग्गे, वच्चंतो नेय चुक्कइ सुमग्गा । पाउणइ भावसुद्धि, मुच्चई मिच्छाविगप्पेहिं ॥७८७ ॥ भावार्थ : पूर्व पुरुषों के मार्ग पर जानेवाला साधक सुमार्ग से भ्रष्ट नहीं होता । गलत विकल्पों से बचता है और भावशुद्धि को प्राप्त करता है। नोट : (१) उपरोक्त चैत्यवंदन महाभाष्य ग्रंथ की गाथाओं में स्पष्ट रुप से देव-देवी के कायोत्सर्ग तथा चतुर्थ स्तुति का समर्थन किया गया है। देववंदनमें 'सिद्धाणं बुद्धाणं' बोलकर वैयावच्चकारी देव - देवी का कायोत्सर्ग करने को
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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