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________________ १५२ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी आदि इत्यादि प्रणिधान पाठ से श्रेष्ठ चैत्यवंदना होती है। वंदनकचूर्णि का पाठ : - "तहा सक्कत्थयाइदंडगपंचग थुईचक्क पणिहाणकरणतो संपूण्णा, एसा कोसा । " -तथा शक्रस्तवादि पांच दंडको, चार स्तुतियों व प्रणिधान करने से सम्पूर्ण चैत्यवंदना होती है। यह श्रेष्ठ चैत्यवंदना कहलाती है। प्रवचन सारोद्धार वृत्ति का पाठ : "एवं च शक्रस्तवपञ्चकं भवति, उत्कृष्टचैत्यवन्दनया वन्दितुकामः साधुः श्रावको वा चैत्यगृहादौ गत्वा यथोचितप्रतिलेखित प्रमार्जितस्थण्डिलस्त्रैलोक्यगुरौ विनिवेशितनयनमानसः संवेगवैराग्यभरोज्जृम्भमाणरोमाञ्चकञ्चुकितगात्रः प्राप्तप्रकर्षहर्षवशविसर्पद्बाष्पपूरपुर्णनयननलिनः सुदुर्लभं योगमुद्रया जिनसंमुखं शक्रस्तवमस्खलितादिगुणोपेतं पठति, तदनु ऐर्यापथिकीप्रतिक्रमणं करोति, ततः पञ्चविशंत्युच्छ्वासमानं कायोत्सर्गं कृत्वा पारयित्वा 'लोगस्सुज्जो - अगरे' त्यादि परिपूर्णं भणित्वा जानुनी च भूमौ निवेश्य मार्जितकरकुशेशयस्तथाविधसुकविकृतिजिननमस्कार भणनपूर्वं शक्रस्तवादिभिः पञ्चभिर्दण्डकैर्जिनमभिवन्दते, चतुर्थस्तुतिपर्यन्ते पुनः शक्रस्तवमभिधाय द्वितीयवेलं तेनैव क्रमेण वन्दते, तदनु चतुर्थशक्रस्तव भणनानन्तरं स्तोत्रं पवित्रं भणित्वा 'जयवीयराय' इत्यादिकं च प्रणिधानं कृत्वा पुनः शक्रस्तवमभिधत्ते, इत्येषोत्कृष्टा चैत्यवन्दना ऐर्यापथिकी प्रतिक्रमणपूर्विकैव भवति, जघन्य मध्यमे तु चैत्यवन्दने ऐर्यापथिकीप्रतिक्रमणमन्तरेणापि भवतीति" -पांच शक्रस्तव इस प्रकार से होते हैं - श्रेष्ठ चैत्यवंदना से देववंदन करने की इच्छावाला साधु अथवा श्रावक जिनमंदिर में जाकर, यथायोग्य प्रतिलिखित एवं प्रमार्जित किया हुआ है स्थान जिसका, नयन व मन जिसने त्रिलोक के नाथ
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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