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________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी पडिक्कमणे चेइहरे भोयणसमयंमि तहय संवरणे । पडिक्कमण सूयण पडिबोह कालियं सत्तहा जइणो ॥ ६४ ॥ इसलिए प्रतिक्रमण की आद्यंतमें की जानेवाली चैत्यवंदना शास्त्रसापेक्ष ही है । सुविहित महापुरुषों ने मान्य की है। इसलिए सुविहित परम्परा है और प्रवचन सारोद्धार ग्रंथकार श्री ने उसे सुविहित परम्पराके रुपमें मान्य किया है। प्रश्न : चैत्यवंदना में चार थोय करते हैं, ये किस आधार पर करते हैं ? १५१ उत्तर : जिनमंदिरके अंदर होनेवाली चैत्यवंदना - देववंदन में चार थोय विहित हैं, यह हम पूर्वमें ललितविस्तरा और चैत्यवंदन महाभाष्य ग्रंथके पाठों से देख चूके हैं। इसके अलावा पू. आ. भ. श्री देवसूरिजी कृत यतिदिनचर्यामें, महोपाध्याय श्रीमानविजयजी कृत धर्मसंग्रहमें, वंदनकचूर्णि में, प्रवचनसारोद्धार में, देववंदन लघुभाष्य में तथा भाष्यकी वृत्तिमें चार थोय से चैत्यवंदना करने को कहा गया है। पू.आ.भ. श्री देवसूरिजी कृत यतिदिनचर्याका पाठ :“पञ्चभिर्दण्डकैः, स्तुतिचतुष्केण शक्रस्तवपञ्चकेन, प्रणिधानेन चोत्कृष्टा चैत्यवंदनेति” -पांच दंडकों से, चार थोय से, पांच शक्रस्तव से तथा प्रणिधान पाठ से श्रेष्ठ चैत्यवंदना होती है। , पू.महोपाध्याय श्रीमानविजयजी कृत धर्मसंग्रह का पाठ : “ तथा पञ्चदण्डकैः (१) शक्रस्तव, (२) चैत्यस्तव, (३) नामस्तव, ( ४ ) श्रुतस्तव, (५) सिद्धस्तवाख्यैः, स्तुतिचतुष्टयेन, स्तवनेन जयवीयरायेत्यादि प्रणिधानेन च उत्कृष्टा ॥” तथा (१) शक्रस्तव, (२) चैत्यस्तव, (३) नामस्तव, (४) श्रुतस्तव, (५) सिद्धस्तव, नामक पांच दंडको से, चार स्तुतियों से, स्तवन तथा जयवीयराय
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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