SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी पू.आ.श्री विजयानंदसूरिजीने ( पू.आत्मारामजी महाराजाने ) जबरदस्त विरोध किया था। त्रिस्तुतिक मत की अविहितता-असत्यता सिद्ध करने के लिए चतुर्थ स्तुति निर्णय' भाग-१ तथा भाग-२ की रचना भी की गई है। इस मत का प्रारम्भ पूर्व में बताए अनुसार १२५० में हुआ। परन्तु यह मत अविरत नहीं चला । क्योंकि, इस मत को शास्त्रों एवं सुविहित परम्परा का बिल्कुल समर्थन नहीं था और यह जैन सिद्धांत से विपरीत था। प्रश्न : मिथ्याग्रह से वि.सं. १२५० में त्रिस्तुतिक मत का प्रारम्भ हुआ ऐसा आप जो कह रहे हैं उसमें सवाल यह उठता हैं, कि यह मत किस आधार पर किन कारणों से किससे अलग होकर शुरु हुआ, इसका इतिहास क्या है? उत्तर : त्रिस्तुतिक असत्य मत के प्रारम्भ का इतिहास प्रवचन परीक्षा ग्रंथ में दर्शाया गया है वह आगे विस्तार से बताया गया है। प्रश्न : १२५० में उत्पन्न हुआ आगमिक मत ही त्रिस्तुतिक मत कहलाता है, यह बात सही है ? यदि यह बात सही है, तो वर्तमान में उससे कैसे अलग पडता है? उत्तर : प्रवचन परीक्षा में आगमिक मत का ही दूसरा नाम त्रिस्तुतिक मत दर्शाया गया है। परन्तु वर्तमान में त्रिस्तुतिक मतवाले आगमिक मतसे अपने को परोक्ष से अलग मानते है और परोक्ष से ही उसका समर्थन भी करते हैं। त्रिस्तुतिक मतवाले स्वयं को आगमिक मत से अलग बताते हैं, इसका कारण यह लगता हैं कि प्रवचन परीक्षा में आगमिक मत को शासन बाह्य-शासन विरोधी मत के रुपमें दर्शाया गया है। __इस विषयकी विशेष चर्चा प्रवचन परीक्षा के आधार पर जो उत्तर दिए हैं, उनमें की गई है। प्रश्न : वर्तमान में त्रिस्तुतिक मतवालोंकी मुख्य मान्यताएं क्या हैं? और वे सत्य हैं?
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy