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________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी ११ प्रश्नोत्तरी प्रश्न : त्रिस्तुतिक मतकी उत्पति कब हुई ? उसका इतिहास क्या है ? उत्तर : त्रिस्तुतिक मतवालों का दावा है कि तीन थोय की परम्परा पूर्वधर आचार्यों से चली आ रही है । परन्तु उनकी यह बात बिल्कुल असत्य है। क्योंकि, तपागच्छ भट्टारक पू.आ. भ. श्री मुनिसुंदरसूरीश्वरजी महाराजा के शिष्य श्री विबुधहर्षभूषणजी स्वरचित श्राद्धविनिश्चय ग्रंथ में लिखते हैं कि...... "हुंनंदेंद्रियरुद्र ११९५९ काल जनितः पक्षोस्तिराकांकितो, वेदा भारुण १२०४ काल औष्ट्रिक भवो विश्वार्क काले १२१४ चलः ॥ षट् त्र्यर्केषु १२३६ च सार्द्धपूर्णिम इति व्योर्मेद्रियार्के पुनर्वर्षे १२५० त्रिस्तुतिकः कलौ जिनमते जाताः स्वकीयाग्रहात् ॥ १ ॥” भावार्थ : वि.सं. १९५९ में ' पूनमिया' मत शुरु हुआ । वि.सं. १२०४ में औष्ट्रिक अर्थात् 'खरतर' मत शुरु हुआ । वि.सं. १२१४ में 'अंचल' मत प्रारम्भ हुआ, वि.सं. १२६३में ‘सार्द्धपूर्णिम' मत शुरु हुआ। वि.सं. १२५० में त्रिस्तुतिक = तीन थोय माननेवाला मत शुरु हुआ। ये सभी मत कलियुग में स्वाग्रहात् = अपने मिथ्या आग्रह से शुरु हुए हैं। (परन्तु जैन सिद्धांत से सम्मत नहीं हैं ।) (१) । उपरोक्त शास्त्रपाठ से पाठक समझ सकते हैं कि, त्रिस्तुतिक मत पूर्वधर आचार्यों से नहीं चला आ रहा है। बल्कि वि.सं. १२५० में जैन सिद्धांत से निरपेक्ष स्वाग्रह से शुरु हुआ है । प्रश्न : इस मतकी उत्पत्ति हुई तब से लेकर आज तक वह अविरत चल रहा है या बीच में बंद भी हुआ था ? उत्तर : त्रिस्तुतिक मत = तीन थोय माननेवाला मत लंबे समय तक नहीं चला । प्राय: सवा सौ वर्ष पूर्व आ. श्री राजेन्द्रसूरिजीने पुनः उसे शुरु किया है। यह नया-नया शुरु हुआ तब स्थानकवासी मत को असत्य मानकर उसका त्याग करके तपागच्छ की संवेगी दीक्षा अंगीकार करनेवाले
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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