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________________ १०५ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी (टीका), ६. परम्परा तथा ७.अनुभव। सूत्र, नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि तथा वृत्ति इन पांच को पंचांगी कहा जाता हैं। पंचांगी मोक्षमार्गकी साधना के उपायों के ज्ञान के लिए परम कारण हैं । इसी प्रकार सुविहित परम्परा भी मोक्षमार्ग के उपायों के ज्ञान का कारण है। इसीलिए चैत्यवंदनाकी विधि तथा उसके भेद बताते हुए चैत्यवंदन महाभाष्य में प्रारम्भ में कहा गया है कि, तीसे करणविहाणं, नज्जइ सुत्ताणुसारओ किं पि। संविग्गायरणाओ, किंची उभयं पि तं भणिमो ॥१५॥ -चैत्यवंदना करने की कोई विधि सूत्रानुसार तथा कोई विधि संविग्न महापुरुषों के आचरण के अनुसार जानी जाती हैं। (इसलिए) हम यहां दोनों के अनुसार चैत्यवंदना की विधि कहते हैं। (१५) ___ यहां स्मरण रहे कि, ठाणांगसूत्रकी टीका भी पंचांगी में ही गिनी जाती है। इसलिए पंचांगी मानने की बात करनेवालों को पंचांगी के सूत्र आदि पांच अंगो में से टीका की बात भी माननी पड़ेगी। ठाणांगसूत्र की टीका कहती है कि, सुविहित परम्परा भी ज्ञानप्राप्तिका मार्ग है। इसलिए सुविहित परम्परा से चली आ रही क्रियाएं भी मानना अत्यंत आवश्यक है। मात्र पंचांगी को ही मानने का आग्रह नहीं रखा जा सकता । अन्यथा वर्तमानमें हम जो क्रियाएं करते हैं, वे सभी अविहित माननी पड़ेगी। क्योंकि, पंचांगी से अनेक क्रियाओंकी विधि ज्ञात नहीं होती और फिर भी हम सब आचरण करते हैं। इस बात की स्पष्टता पू.आ.भ.श्री धर्मघोषसूरिजीने 'संघाचार भाष्य' में की है। इस प्रकार पंचांगी तथा सुविहित परम्परा का समन्वय करके ही कोई भी क्रिया करनी चाहिए। ___ यह भी याद रखें कि, कोई भी परम्परा आदरणीय नहीं बन जाती है । बल्कि अशठ, संविग्न, भवभीरु, गीतार्थ महापुरुषों द्वारा आचरित
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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