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________________ १०४ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी किस घरका न्याय है? मुनिश्री जयानंदविजयजी अपनी पुस्तक के पृष्ठ-६७-६८-६९-७० पर पू.आ.भ.श्रीहरिभद्रसूरिजी आदि की भूलें निकालने बैठे हैं, किन्तु उन्हें अपनी दोहरी नीति दिखाई नहीं देती? इसलिए उन्हें आवश्यकचूर्णि को याद करने का अधिकार ही नहीं है। ___मुनिश्री ने ग्रंथो के नाम दिए हैं। परन्तु ग्रंथो के पाठ नहीं दिए।पाठ दें तो उनकी बात ही झूठी सिद्ध हो सकती है। इसलिए लोगों से हम शास्त्रों से हमारी बात करते हैं, यह असत्य समझाने के लिए मात्र ग्रंथो के नाम दिए हैं और जिन जगहों पर पाठ दिए हैं, वहां भी ग्रंथकार व अन्य ग्रंथो के अभिप्राय से बिल्कुल विरुद्ध अर्थघटन किया है। यह हमने पूर्व में विस्तार से अनेक स्थलों पर देखा ही है। ___ इसलिए पूर्वधरों के काल से आजतक अविच्छिन्नता से श्रुतदेवतादि का कायोत्सर्ग होता आया है। शास्त्रों ने उसमें साक्षी दी है। महापुरुषों ने यह मार्ग अपनाया है और आगे बढ़ाया है। मात्र बीचमें एक बार सं.१२५०में मिथ्याग्रह से इसका विरोध करनेवाले खड़े हुए थे। परन्तु वह विरोध भी तुरंत लुप्तप्रायः हो गया था। इसके बाद सौ सवासौ वर्ष पूर्वे आ. राजेन्द्रसूरिजीने विरोध खड़ा किया था। परन्तु वह निराधार है, यह हमने देखा। आजतक हुए हजारों आचार्य, उनकी शिष्यपरंपरा द्वारा आचरित मार्ग का कोई विरोध करके आशातना न करे, यही एक नम्र सिफारिश है। मुनिश्री जयानंदविजयजीने पृष्ठ-६७ से ७० पर की बातें मात्र वितंडावाद है। इसका जवाब अनेकवार दिया है। प्रश्न : मोक्षमार्गकी साधना का सर्वांगीण ज्ञान किससे प्राप्त होता है? उत्तर : श्री ठाणांगसूत्र की टीकामें ज्ञान प्राप्ति के सात उपाय बताए गए हैं । १. सूत्र ( मूलसूत्र), २. नियुक्ति, ३. भाष्य, ४. चूर्णि, ५. वृत्ति
SR No.022665
Book TitleTristutik Mat Samiksha Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherNareshbhai Navsariwale
Publication Year
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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