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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र सफल वरदान प्रकार से सजाया गया, महाराज को बड़ी उमर में पुत्र पुत्री होने से प्रजाजनों के आनंद का पार न रहा । इस प्रकार दश दिन पर्यन्त आनंदोत्सव कर सगे संबंधी और प्रजाजनों को प्रीति भोजन कराया, जनता के समक्ष मलयादेवी का वरदान सफल होने से उसका नाम याद रखने के लिए महाराज ने हर्ष पूर्वक उन पुत्र पुत्री का मलयकेतु और मलयासुंदरी नाम रखा । ज्यों - ज्यों कुमार और कुमारी बुद्धि को प्राप्त होने लगे त्यों - त्यों चंद्रमा से समुद्र की तरंगों के समान राजा और रानी के मनोरथ बढ़ने लगे । धीरे - धीरे वृद्धि पाते हुए कुमार - मलयकेतु और मलयासुंदरी अब विद्या ग्रहण करने की वय को प्राप्त हुए । विद्या के बिना राजकुल में पैदा होकर मनुष्य सच्ची शोभा नहीं पाता यह समझकर बालकों के हितैषी महाराज वीरधवल ने एक धुरंधर विद्वान कलाचार्य को बुलाकर उसके पास राजकुमार और राजकुमारी को विद्याभ्यास करने के लिए रख दिया । बुद्धिमान् राजकुमार और राजकुमारी ने पूर्व पुण्य के उदय से थोड़े ही समय के अंदर पहले ही याद की हुई विद्या के समान तमाम कलाओं को संपादन कर लिया । राजकुमार अश्वक्रीड़ा, हाथियों से लड़ना और खड्ग खेल में अत्यंत निपुण हो चुका था। अपनी कला की और भी उन्नति करने की इच्छा से धनुष बाण लेकर वह जब कभी लक्ष्य वेध करता था । तब उसकी कला देखकर राजकुल के बड़े - बड़े पुरुष हर्ष से चकित हो जाया करते थे । मलयासुंदरी का हृदय स्वभाव से ही करुणारूप था । वह भोले स्वभाव की थी । उसके हृदय और शरीर में कोमलता ने निवास किया था । माता पिता की संस्कारिता के कारण उसकी बचपन से ही सद्धर्म में रुचि थी । वह अपने अनेक सद्गुणों के कारण समस्त राजकुटुंब को प्राणों से भी अधिक प्यारी थी । धीरे - धीरे अब उसने बाल्यावस्था का परित्याग किया था । अब युवावस्था में राजकुमारी के शरीर की शोभा कुछ अपूर्व ही मालूम होती थी । उसके शरीर के अंग प्रत्यंग विकास को प्राप्त हो चुके थे । नेत्रों को आनंद देनेवाली उसके शरीर की लावण्यता प्रति दिन बढ़ती जा रही थी । I 1 47
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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