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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र सफल वरदान सफल वरदान पृथ्वी पर सर्वत्र चंद्रमा की चांदनी पसर रही थी । महाराज वीरधवल महारानी चंपकमाला के महल में आकर आराम कर रहे थे। नजदीक में रहे हुए बगीचे से शरीर को सुख देनेवाले मंद मंद सुगंधित पवन के झोके आ रहे थे, शय्या पर बिछाये हुए पुष्पों की सुगंधी महक रही थी। सारे महल में शांति का साम्राज्य पसर रहा था । ऐसे समय विरह की वेदनाएँ नष्ट हो जाने पर दंपती अपूर्व सुख सागर में डूब रहे थे । बहुत समय तक प्रेम और हास्य विनोद की बातें कर परिश्रम से थके हुए महाराज और महारानी सुखनिद्रा में विलीन हो गये। पुण्य के प्रभाव और मलयदेवी के वरदान से महारानी चंपकमाला ने उसी रात्रि में गर्भ धारण किया ।ज्यों - ज्यों गर्भ के चिह्न विशेष प्रकट होने लगे त्यों - त्यों राजा हर्ष से पुलकित होने लगे और महारानी गर्भ से वृद्धि को प्राप्त होती गयी । गर्भ में उत्तम प्राणी आने के कारण रानी को शुभ इच्छायें पैदा हुई! और राजा ने भी उन सबकी पूर्ति की । क्रम से नव महीने पूर्ण होने पर शुभ लग्न में महारानी चंपकमाला ने सुखपूर्वक महान् तेजस्वी पुत्र पुत्रीरूपी युगल को जन्म दिया । तुरंत ही महाराज वीरधवल को वेगवती दासी ने राज सभा में जाकर पुत्र और पुत्री के जन्म की बधाई दी । राजा के हर्ष का पार न रहा । बिना किरीट के उसने अपने शरीर से तमाम अलंकार उतारकर प्रीतिदान में वेगवती को दे दिये और उस रोज से उसका दासी पन मिटा दिया। देशभर में हर्षोत्सव मनाया गया । अर्थी जनों को खूब दान दिया गया । आरंभ के व्यापार बंद कराये गये। कैदियों को छोड़ दिया गया । तमाम जीवों को अभय दान दिया गया । शहर को अनेक
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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