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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र शोक में हर्ष कर सकती । राजा को उस व्यंतर देव की माया का पता नहीं लग सका। इसी कारण वह उस बनावटी मुर्दे को रानी समझकर महान् विलापकर रहा है । आपका दुःख सुनकर मैंने तुरंत ही देवी से प्रश्न किया कि मेरे स्वामी मेरे वियोग में जीवित रहेंगे या नहीं? और वे मुझे कब मिल सकेंगे?" देवी ने कहा - "भद्रे ! सात पहर के बाद दुःसह्य पिड़ा को सहता हुआ राजा तुझे जीवित मिलेगा । मैं देवी से यह पूछना ही चाहती थी कि मुझे कब मिलेंगे। इतने ही में दासी सहित आकाश मार्ग से वहां पर एक विद्याधरी आ पहुंची । उसे देखकर मलयादेवी मेरे पास से अकस्मात् अदृश्य हो गयी। मुझे वहां पर एकाकी देख वह विद्याधरी मेरे पास आयी और विस्मय चित्त से वह मुझे पूछने लगी । कि हे भद्रे ! इस निर्जन पहाड़ पर सुंदर रूपवाली तूं अकेली कौन है? उसके उत्तर में मैंने उसे अपना तमाम वृत्तांत कह सुनाया । मेरी बात सुनकर खेदपूर्वक वह विद्याधरी बोलने लगी । अहो! विधि की विचित्रता ! ऐसी रूपवती, उत्तम कुल में पैदा होनेवाली और राजा की रानी होने पर भी निर्जन पहाड़ पर ऐसे संकट में पड़ी है ।" "हे शुभे ! मैं तुझे इसी वक्त तेरी चंद्रावती में छोड़ आती परंतु मुझे इस पहाड़ पर विद्या सिद्ध करनी है । अगर मैं इस वक्त उस विद्या का आराधन न करूँ तो फिर वह विद्या सिद्ध न हो सकेगी। मैं अब दोनों तरफ से संकट में पड़ गयी । इसीलिए मैं तुझे इस समय तेरी नगरी में नहीं पहुंचा सकती । इस समय मेरा पति भी मेरे पीछे आनेवाला है । वह ऐसा सुंदर रूप देखकर तेरा शील खंडित करेगा या वह तुझे सदा के लिए पत्नी बनाकर रखेगा तो मुझे भी सपत्नि का महान् संकट भोगना पड़ेगा, इसलिए हे भद्रे ! चल तूं मेरे साथ, मैं तुझे अच्छी तरह किसी जगह छिपा दूँ। इस प्रकार कहकर वह बड़े जोशीले प्रवाह में बहती हुई मुझे एक नदी के किनारे ले गयी । उस समय भय के मारे मेरा सारा शरीर कंपायमान हो रहा था । मुझे शंका होती थी क्या यह विद्याधरी मुझे मार डालेगी? वृक्ष पर लटका देगी? या नदीप्रवाह में धकेल देगी!' "" नदी के किनारे पर एक सूका हुआ और मोटा लक्कड़ पड़ा था । विद्याधरी ने अपनी विद्याशक्ति से उस लक्कड़ के दो लंबे विभाग किये । एक मनुष्य अच्छी 43
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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