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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र शोक में हर्ष "स्वामिनाथ! मैंने मलया देवी से कहा - "हे महादेवी! यदि आप सचमुच ही मेरी सहायक हैं तो मुझे पुत्रादि संतति नहीं है । जिसके बिना हमारा विशालराज्य भी निराधार है । गृहस्थियों का गृहसंसार पुत्रादि के बिना शोभा नहीं पाता । अतः प्रसन्न होकर मुझे पुत्र प्राप्ति का वरदान दो।" यह बात सुनते ही राजा उत्सुक हो बीच में ही बोल उठा – 'हे प्रिय वल्लभे! उस परोपकारी देवी ने तुझे इस बात का क्या उत्तर दिया? रानी बोली - स्वामिन्! उस देवी ने खुश होकर मुझे कहा - "भद्रे! तुझे पुत्र पुत्री रूपी एक युगल (जोड़ा) थोड़े ही समय में प्राप्त होगा । इतने दिनों तक तेरे पति के दुश्मन इस व्यंतर देव ने ही तुम्हारे संतति का निरोध किया हुआ था। अब मैं उस अपने सेवक व्यंतर देव को तुम्हारा नुकसान या तुम्हें हैरान करने से रोक दूंगी।" यह वचन सुनकर राजा के हृदय में हर्ष का पार न रहा । उसने रानी की बहुत ही प्रशंसा की और कहा - "हे साध्वी, प्रिये! तुझे बड़ी श्रेष्ठ बुद्धि सुझी! तूंने बहुत अच्छा वरदान मांगा । इससे तूंने मेरे वंश का उद्धार किया और मेरे हृदय की चिंता भी दूर कर दी । प्यारी! तेरे सिवा मेरे दुःख में हिस्सा लेने वाला और कौन हो सकता है? प्रिये! ऐसी दुःखी अवस्था में जो तुझे संतति संबंधी चिन्ता दूर करने की बात याद आयी यही हमारे भाग्योदय का सूचक प्रमाण है। क्या मलयादेवी ने और भी उपकार किया है? रानी ने जवाब दिया यह लक्ष्मीपुंज नामक हार उस महादेवी ने अपने हाथ से मेरे गले में डाला है । और उसने कहा है कि यह दुर्लभ हार महाप्रभावशाली है । गले में निरंतर धारण करने से शुभफल दायक होता है । इस हार के प्रभाव से तुझे प्रभावी संतति प्राप्त होगी, और नित्य ही तुम्हारे मनोरथ पूर्ण होंगे। हे स्वामिन्! इसके बाद मैंने मलयादेवी से पूछा । जिस देव ने मुझे इस पहाड़ पर ला छोड़ा है वह फिर इस समय कहां गया?" देवी ने कहा - "भद्रे! तुझे इस पर्वत पर छोड़कर वह देव फिर वापिस चंद्रावती नगरी में ही गया है और तेरे स्थान में तेरे ही जैसा एक मृतक शरीर बनाकर गुप्त रूप से वहां ही रहा है। तेरा पति तेरे सजीवन शरीर को अकस्मात् निर्जीव देखकर इस समय जिस दुःख का अनुभव कर रहा है उसे मैं कथन नहीं
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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