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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र ৰন কি बसे । सचमुच ही संसार में तमाम वस्तु नाशवान है । देहधारी जीवों का चाहे जितना लंबा आयुष्य हो तथापि उसका अंत अवश्य है । मेरे पिता की मृत्यु के बाद मेरा बड़ा भाई जयचंद्र राज्यासन पर आरूढ़ हुआ । उसने मुझे राज्य का हिस्सा न दिया इससे मैं अपना अपमान समझकर इस राजधानी को छोड़कर अन्यत्र चला गया । मैं चंद्रावती नगरी में पहुंचा वहाँ जाकर उस नगरी के बाहर उद्यान में एक विद्यासिद्ध पुरुष को मैंने देखा, परंतु वह सिद्ध पुरुष अतिसार रोग से ऐसा दुःख भोग रहा था कि जिससे ना तो उससे चला ही जाता था न बोला जाता था । उसकी ऐसी दशा देखकर मेरे हृदय में दयासंचार हुआ । दुःखी मनुष्यों को देखकर जिसके हृदय में निःस्वार्थ दया का संचार नहीं होता वह मनुष्य मनुष्य नाम धारण करने के योग्य नहीं । मनुष्य जब खुद दुःखी होता है तब वह दुःख से मुक्त होने के लिए दूसरे मनुष्यों की सहायता मांगता है, ऐसी दुःखी अवस्था में यदि कोई थोड़ी भी सहायता दे तो वह बहुत खुश होता है। इस तरह का स्वयं अनुभव होने पर भी यदि वह मनुष्य दुःखी अवस्था में पड़े हुए दूसरे मनुष्य को सहायता न दे तो उस विचार शून्य मनुष्य को सचमुच ही नरपशु समझना चाहिए । ऐसे मनुष्य पृथ्वी पर भारभूत होते हैं । जहाँ पर अपनेपन की और स्वार्थपन की वृत्तियाँ होती हैं वहाँ पर परमार्थ वृत्तियाँ और धार्मिक भावनाएं टिक नहीं सकतीं । ज्ञानी पुरुष पुकारकर कहते हैं कि अगर तुम्हें सुखी होना है तो दूसरों को निःस्वार्थ बुद्धि से सुखी करो । जहाँ पर स्वार्थ सिद्धि होने की आशा होती है वहाँ सहाय करने वाले अधम मनुष्यों की दुनियाँ में कमी नहीं है । परंतु अपने स्वार्थ की आशा न रखकर बल्कि जिससे जान पहचान तक भी न हो ऐसे दुःखी मनुष्यों को सहाय देकर सुखी करनेवाले वीर पुरुष इस संसार में विरल ही होते हैं । किसी भी वस्तु की इच्छा न रखकर हृदय में संचारित दया की प्रेरणा से मैंने उस सिद्ध पुरुष की ऐसी सेवा शुश्रुषा और उपचार से सहाय की जिससे वह थोड़े ही दिनों में सर्वथा निरोगी हो गया । आरोग्य प्राप्त करके उस सिद्ध पुरुष ने मेरा नाम ठाम पूछा । संक्षेप से मैंने अपने ऊपर बीती हुई सब घटना कह सुनायी। 15
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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