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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र 1 आगन्तुक - युवक न हो सकी। दूसरी तरफ अपने बुजुर्गों को निरंतर दुःखी अवस्था में देखना यह भी उसे उचित न लगा । उसने तुरंत ही अनेक मंत्रवादी बुलवाये और अपने बुजुर्गों का दुःख दूर करने के लिए खूब द्रव्य व्यय करना शुरू किया । अनेक तरह के उपाय किये गये, अनेक मांत्रिक तांत्रिकों ने अपने प्रयोग किये परंतु अपने आपसे किये हुए कर्म का कटुफल भोगे बिना किस तरह मुक्ति हो सकती थी । पानी पर किये हुए प्रहार के माफक उन लोगों के किये हुए अनेक उपाय सब निष्फल गये । इतना ही नहीं किन्तु धीरे - धीरे उनका कष्ट और भी बढ़ता गया । गुणवर्मा निराश हो गया । लक्ष्मी की प्राप्ति के साथ दुःखियों के दुःख श्रवण करने की शक्ति नष्ट हो जाती है, दुःखी के लिए सांतवना के शब्द बोलने पर तो गोदरेज का ताला लग जाता है । दीन दुःखियोंके दुःख दूर करने हेतु पैरों पर बेड़ियाँ लग जाती हैं, दीन - दुःखियों के दर्द से विमुख बनाने वाली लक्ष्मी को मानव भव में अग्रस्थान देरक तूंने अपना कौन - सा हित किया है? अवश्य चिंतन करना । जयानंद 8
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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