SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र पूर्वभव वृत्तान्त कर लिया था और पूर्वभव सम्बन्धि गाढ़ स्नेह होने के कारण उसने वह हार कनकवती की गोद में गिराया था। पूर्वोक्त अन्तिम वृत्तान्त सुनते ही आश्चर्य से चकित हो राजा वीरधवल नम्रतापूर्वक बोल उठा- भगवन् ! क्या महाबल कुमार स्वयंवर होने से पहले भी कभी मलयासुन्दरी से मिला था? यह बात तो असंभवित सी मालूम होती है। स्वयंवर के सिवा वह कभी हमारे यहाँ आया ही नहीं था । राजा वीरधवल के ये वचन सुनकर महाबल और मलयासुन्दरी मुख पर वस्त्र डालकर गुप्त रीत्या हँसने लगे । क्योंकि उनके प्रथम मिलन का समाचार उन दोनों के सिवा अन्य किसी को मालूम ही न था । राजा की शंका दूर करने के लिए ज्ञानी महात्मा ने तमाम वृत्तान्त विस्तारपूर्वक कह सुनाया कि राजकार्य के लिए आये हुए शूरपाल राजा के सेनापतिमंडल के साथ महाबल कुमार गुप्त वेष में चंद्रावती आया था। संध्या के समय वह प्रथम कनकवती के महल में आया, उसीसे रास्ता पूछ ऊपर मलयासुन्दरी से जा मिला था । उस समय प्रथम मिलन में प्रेम बन्धन को दृढ़ करने के लिए मलयासुन्दरी ने लक्ष्मीपुंज हार महाबल के गले में डाल दिया था। पूर्व जन्म के वैर के कारण इस बात को दूसरे रूप में बदलाकर कनकवती ने कपट भाव से आपको उलटा सीधा समझाकर मलयासुन्दरी पर आपका विशेष कोप कराया था । इत्यादि कनकवती का भी ज्ञानी गुरु ने संक्षेप से सर्व वृत्तान्त कह सुनाया जिसे सुनकर लोगों के हृदय में उसके प्रति बड़ी घृणा पैदा हुई । ज्ञानी गुरुदेव के वचन सुनकर महाबल और मलयासुन्दरी हाथ जोड़कर बोल उठे -ज्ञान दिवाकर गुरुमहाराज जो फरमाते हैं वह सर्वथा सत्य है । सर्वज्ञ के ज्ञान में कोई बात छिपी नहीं रहती । जब व्यन्तरी देवी ने कुमार को हरण किया याने जब वह उस व्यन्तरी के हाथ पर बैठकर आकाश मार्ग से जा रहा था उस समय महाबल ने उस व्यन्तरी पर जो मुष्टी प्रहार किया था उससे पीड़ित होकर वह व्यन्तरी फिर आज तक कुमार के पास नहीं आयी उसका वैरभाव वहाँ पर ही पूर्ण हो गया । पूर्व भव में जिस सुन्दर नामा नौकर को मुनि को दाग देने के लिए जलते 222
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy