SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र स्वजन - मिलाप नर में से नारायण बनने वालों ने ही नर जन्म को सार्थक किया है । मोह की सेना को हराना सहज सुलभ नहीं परन्तु समकित सेनापति के कथनानुसार युद्ध करने वाला मोह पर विजय प्राप्त कर लेता है। . अन्त दुःख का नहीं, सुख का अन्त करने हेतु प्रयत्न करना है । राग सुख है, द्वेष दुःख है । बस प्रथम राग का अन्त करना है । द्वेष का अंत स्वयं हो जायगा जिन वही जो राग का विजेता है । तलवार का घाव उतना घातक नहीं, जितना घातक है जबान का घाव। नामना की कामना पामरता की पहचान । थाक भव भ्रमण का जिसे लगे वही धर्मी । . यंत्र, तंत्र, मंत्र से भी बढ़कर है उत्साह, जो सर्वोपरी है । - जयानंद 205
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy