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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र स्वजन मिलाप कुटुम्ब नृत्य करता है; वैसे ही पुत्र को देखकर सारा राजकुटुम्ब हर्षित हो उठा। शूरपाल राजा ने बलसार ने पूछा - इस कुमार का तुमने क्या नाम रख्खा है ? बलसार ने कहा - महाराज ! इसका नाम बल रखा है। राजा ने पुत्र को अपनी गोद में ले लिया, उस समय उसके हाथ में सौ सुवर्ण मुहरें थीं । उन स्वर्ण मोहरों की थैली को बालक ने अपने हाथ से पकड़कर खींच लिया यह देख राजा ने उसका नाम सतबल रखा । शूरपाल राजा ने बलसार सार्थवाह का सर्वस्व लूटकर उसे सकुटुम्ब जीवन दान दे देश से बाहर निकाल दिया । - स्वजन सम्बन्धियों का मिलाप होने के कारण राजकुटुम्ब और सारे राज्यभर में आज के दिन आनन्दोत्सव मनाया गया । बहुत से समय से पुत्र और पुत्री के विरह से संतप्त दोनों राजा आज शान्ति का अनुभव कर रहे थे । सिद्धराज सूरपाल राजा का महाबल कुमार नामक पुत्र है, यह जानकर प्रजा में और भी आनन्द छा गया । अपने भुजाबल से पैदा किया हुआ राज्य महाबल कुमार ने अपने पिता को समर्पण किया । परस्पर परमस्नेह में निमग्न होकर दोनों राजकुटुम्ब सानन्द समय व्यतीत करने लगे । अनेक प्रकार के पार्थिव वैभवों का अनुभव करता हुआ महाबल का राजकुटुम्ब इष्ट संयोग के सम्बन्ध से पूर्व अनुभूत असह्य दुःखों को सर्वथा भूल गया था। पूर्वोपार्जित प्रबल पुण्य का सूर्योदय पराकाष्टा को पहुँचा मालूम होता था । इस समय आन्तर सुखशांति प्राप्त करने के लिए उन्हें किसी ज्ञानवान् विरक्तात्मा सद्गुरु के समागम की आवश्यकता थी । मानो वह पूर्ण करने के लिए ही उनके पुण्य से प्रेरित हो पार्श्वनाथ प्रभु के शिष्य महात्मा "चंद्रयशा केवली, विचरते हुए और भव्य जीवों को उपदेश करते हुए वहाँ पर आ पधारें ।" 204
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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