SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र दुःखों का अन्त विपरीतबुद्धिः" इस उक्ति के अनुसार राजा के मना करने पर भी मंत्री करंडिये के पास आकर जब उसका ढक्कन उठाने लगा तब फिरसे मृत्यु की दुंदुभी के समान वही शब्द सुनायी दिया "राजा को खाऊँ या मंत्री को" इस भयानक शब्द का भी अनादर कर करंडिया उघाड़कर आम्रफल लेने की इच्छा से मंत्री ने जब उसके अन्दर हाथ डाला उस समय यमराज की जीभ के समान उस करंडिये से भयंकर अग्निज्वाला प्रकटी । इस भयंकर अग्निज्वाला में जीवा मंत्री पतंग के समान भस्मसात् हो गया । वह अग्निज्वाला इतने से ही शान्त न होकर उसने विकराल रूप धारण कर लिया । देखते ही देखते उसने ऊपर बढ़कर सभामंडप को भी भस्मीभूत कर दिया । सभा में भगदड़ मच गयी । राजा भयभीत हो काँपने लगा। मृत्यु के भय से उसने शीघ्र ही सिद्धराज को बुलवाया । इस समाचार से शहर भर में हलचल - सी मच गयी। जीवा मंत्री के मरने, करंडिये में से निकलते हुए भयानक शब्द, और अग्निकांड की दुर्घटना सुनाकर राजा ने नम्रता पूर्वक महाबल से कहा - हे सत्पुरुष ! हम पर कृपाकर यह उपद्रव जल्दी शान्त करो । राजा की नम्र प्रार्थना से एवं उस अग्नि से किसी निर्दोष प्राणी के जानमाल को नुकसान न पहुँचे यह विचारकर सिद्धराज ने पानी मंगाकर मंत्र पढ़ उस करंडिये पर छिड़का । इससे महाबल की इच्छा के अधीन हुए, उस देव ने अग्नि शान्त कर दिया । महाबल ने उस करंडिये पर फिर से ढक्कन ढक दिया । फिर राजसभा में पहले - सी ही शान्ति हो गयी । परन्तु किसी भी मनुष्य की उस करंडिये के पास जाने की हिम्मत न चली । सबके दिल में यही विचार होता था कि इस भयंकर करंडिये को यहाँ से उठवा दिया जाय । लोगों के यह विचार करते हुए महाबल ने फिर से उस करंडिये को उघाड़ा और उसमें से दो चार सुन्दर फल निकाल वह राजा को देने लगा । परन्तु भयभीत हुए राजा ने उन फलों को लेने से इन्कार कर दिया । महाबल ने वे ही फल दूसरे मनुष्य के हाथ में देकर राजा को यह निश्चय करा दिया कि अब उन फलों में किसी तरह का भय नहीं है । फिर अन्य पुरुष के द्वारा राजा ने उन फलों को ग्रहण किया। मंत्री की मृत्यु से राजा को इतना दुःख हुआ मानों उसकी दहिनी भुजा टूट गयी हो । परन्तु उसकी मृत्यु में राजा और मंत्री का ही 189
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy