SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र दुःखों का अन्त पुरुषों के लिए यह बनने योग्य है । हमारे राजा को सदैव पित्त की पीड़ा रहती है और वैद्यों का कथन है कि आम्रफल के खाने से वह पित्त पीड़ा शान्त होगी। प्रधान के ये शब्द सुनकर कुमार विचारने लगा - यह आदेश तो सर्वथा अति दुष्कर है। इसमें तो मेरी बुद्धि भी कुछ काम नहीं करती । इस कार्य में मेरे मृत्यु की संभावना है । तथापि किसी विधियोग से यदि यह कठिन कार्य मुझसे हो गया तो मुझे जीवन और स्त्री दोनों की प्राप्ति होगी । इसलिए इस कार्य को भी करने का मुझे प्रयत्न तो करना चाहिए । मेरे कार्यों से और राजा की अनीति से यहाँ की जनता का मुझ पर पूर्ण प्रेम है । यह भी मेरे विजय का चिन्ह है । इत्यादि विचारकर साहस धारणकर महाबल बोला – मंत्रीवर ! मैं आप का यह कठिन कार्य भी अगर कर दूँतो आप बार - बार अपने वचनों से अब न फिरना । यदि आप फिर भी वैसा ही करेंगे तो आप लोगों के हक में अच्छा परिणाम न होगा । इतना कहकर महाबल अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ। संसार में साहस के द्वारा कठिन से कठिन कार्य सिद्ध होते हैं। साहस में प्रबल प्रयत्न, उत्साह और अतुल पराक्रम है । साहसियों का अनेक मनुष्य आश्रय लेते हैं । इसलिए साहस में अगाध शक्ति है । इस बात का समाचार मलयासुन्दरी को भी मिल चुका था । इसलिए उसके हृदय में अति दुःख होना स्वाभाविक ही था । उसकी आँखों से अश्रु टपकते हुए देखकर भी महाबल धैर्य धारणकर छिन्न टंक नामक पहाड़ के संमुख चल पड़ा । साहसी लोग अपना स्वार्थ सिद्ध करने में विलम्ब नहीं किया करते। इस समय भी उसके प्रेम और सहानुभूति से महाबल के पीछे संख्या बद्ध मनुष्य पहाड़ की तरफ जा रहे थे । क्योंकि स्वामी प्रेम की अपेक्षा संसार में सदैव गुणों पर अधिक प्रेम होता है । महाबल मार्ग दर्शक राजपुरुषों के साथ उस विषम पर्वत पर चढ़ गया । इस समय भी जनता के हृदय में शोक सन्ताप और राजा तथा जीवा मंत्री के हृदय में आनंद छा रहा था । शिखर की तीक्ष्ण चोटी पर चढ़कर राजपुरुषों ने बहुत दूरी पर नीचे विषम खीण में रहा हुआ इशारे से एक आमतरु बतलाया । महाबल ने उसको लक्ष्यकर पंचपरमेष्ठि मंत्र को स्मरणकर 185
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy