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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र दुःख में वियोगी मिलन पड़ा । कामान्ध कंदर्प ने जब उस पर प्रतिदिन मार पीट का क्रम शुरु कर दिया तब अति दुःखित हो उसने सोचा, कितने दिन तक इस नारकीय दुःख को सहा जाय ! ऐसी कदर्थनाओं से आत्महत्या करना श्रेयस्कर है । परन्तु यहाँ से किसी तरह निकल भागूं तब न ? पुरुष रूप में अब मुझे अपने शील भंग होने का कहीं पर भी भय नहीं । और इसी कारण इस तरह की यातनायें भी मुझे अन्यत्र न सहनी पडेंगी । I 1 एक दिन रात के समय जब कि उसका पहरेदार निद्रा में पड़ा सो रहा था अन्य कोई न जान सके इस तरह वहाँ से निकल मलयासुन्दरी शहर से बाहर आ पहुँची । स्त्री जाति होने के कारण एवं अनुभव और धैर्य के अभाव से वह वहाँ से दूर भाग जाने के लिए समर्थ न हुई । दुःख से मुक्त होने के लिए मृत्यु का शरण लेने के सिवा उसे अन्य कोई उपाय न सूझा । वह आत्महत्या करने का निश्चयकर वहाँ पर रहे हुए एक जीर्ण मठ की दीवार के पास खड़ी हो गयी। उसी दीवार के पास एक बड़ा अंधकूप नामक पानी रहित कुआ था; वह मलया सुन्दरी के देखने में आ गया; उसमें झंपापात करने के इरादे से वह उस कुएँ के किनारे पर खड़ी हो विचारने लगी - प्रातः काल होने पर मुझे वहाँ पर न देख अवश्य ही राजा और राजपुरुष मेरी खोज में मेरे पीछे आयेंगे और क्रोंधांध हो मुझे बुरी मृत्यु से मारेंगे । इससे इस कुएँ में कूदकर स्वयं मर जाना अच्छा है । यह सोच उसने पंच परमेष्ठि मंत्र का स्मरण किया। मरने का निश्चय करने पर भी वह महाबल कुमार का प्रेम और भक्तिभाव भूल न सकी । अतः अंत में दुर्दैव को उपालंभ देते हुए वह बोल उठी - हे दुर्दैव! तूने मुझे मेरे बन्धु से वियोगन बनायी । और तूंने ही निःस्सीम प्रेमवाले मेरे प्रियतम महाबल से मुझे जुदा कराया ! हे दैव ! जन्मान्तर में तो तूं अवश्य ही मुझ पर प्रसन्न हो मेरे प्रियतम के साथ मेरा मिलाप करा देना । हे जंगल के पशुपक्षियों ! अगर तुम्हें कहीं पर भी मेरे स्वामी महाबल मिल जायँ तो उन्हें मेरा अन्तिम नमस्कार पूर्वक यह संदेश सुनाना कि उस तुम्हारी वियोगिनी मलया सुन्दरी ने दुःख से कायर हो, आपको याद करते हुए इस अंधकूप में प्राण त्याग किये हैं । इस प्रकार दैव को उपालम्भ देकर और पशुपक्षियों को अपना संदेश महाबल से सुनाने की 171
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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