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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र दुःख में वियोगी मिलन युवापुरुष बैठा है, और तमाम रानियां उसके साथ हँसी मजाक कर रही हैं । यह समाचार सुनते ही कंदर्प शीघ्र ही महल में आया और साक्षात् कामदेव के समान सुन्दर रूपवान उस नवीन पुरुष को देख वह आश्चर्य में पड़ गया । वह एक दम बोल उठा - "यह पुरुष कौन है ? इसने महल में किस तरह प्रवेश किया ? इस प्रश्न के उत्तर में राजा को कुछ भी जवाब न मिला । अकस्मात याद आने से राजा ने मलयासुन्दरी की तलाश करायी; परंतु ढूंढने पर भी उसका पता न लगा । अतः आँखें चढ़ा उसने द्वारपाल से पूछा - अरे ! वह जो आज नयी स्त्री यहाँ पर भेजी गई थी वह कहाँ है हाथ जोड़कर नम्रता से द्वारपाल बोला - महाराज ! थोड़ी ही देर हुई वह स्त्री यहाँ ही बैठी थी ; वह महल से बाहर बिलकुल नहीं गयी, क्योंकि मैं दरवाजे पर सावधान हो पहरा दे रहा हूँ। यह सुन राजा विचार ने लगा - किसी प्रयोग से उस सुन्दरी ने पुरुष रूप तो नहीं धारण किया है ? जानने के लिए राजा ने उससे प्रश्न किया अरे ? तूं कौन है ! मलया - "मैं कौन हूँ ? क्या तू स्वयं अपनी नजर से नहीं देख सकता? राजा ने कुछ देर तक विचारकर निश्चयकर लिया कि यह उस सुन्दरी ने ही मेरे स्वाधीन न होने के कारण किसी तरह अपना रूप परिवर्तन कर लिया है । अगर यह यहाँ पर रहेगा तो कुछ और अनर्थ होने का संभव है । यह विचारकर वह बोला - सूभटों ! क्या देखते हो ? इस पुरुष को महल से बाहर निकाल दूसरे मकान में नजर कैद रखो ! राजाज्ञा होते ही राजपुरुषों ने उसे बाहर निकालकर नज़दीक के एक मकान में अपनी निगरानी में नज़र कैद किया । मलयासुन्दरी को इससे बड़ा हर्ष हुआ । अपने शील की रक्षा देख उसके आनन्द का पार न था । परन्तु इतने मात्र से ही उसके रूप में मुग्ध बना राजा कंदर्प उसे छोड़ नहीं सकता था। थोड़ी ही देर के बाद वह फिरसे पुरुषरूपा मलया सुन्दरी के पास आया और अनेक प्रकार के अनुकूल उपचारों से पूछने लगा, सुन्दरी ! तुमने अपना यह पुरुष रूप किस लिए और किस प्रयोग से बना लिया ? किस प्रयोग से फिर तुम्हारा स्त्री रूप बनेगा ? मलयासुन्दरी ने इस बात का कुछ भी उत्तर न दिया । इससे क्रोधातुर हो राजा ने उसकी बहुत ही ताड़ना - तर्जना की । पराधीनता में अभागन मलयासुन्दरी को वह सब कुछ मौन रहकर सहना 170
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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