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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र निर्वासित जीवन लिए अपने तंबू से निकला । जब वह दिशा जाकर उस घनी-वृक्षघटा के पास से वापिस लौटा तब उसने वहां पर एक बच्चे के रोने की आवाज सुनी। इससे उसे बड़ा आश्चर्य हुआ । वह सोचने लगा ऐसे भयंकर जंगल में छोटे बच्चे की आवाज कहां से आ रही है। बच्चे के शब्दानुसार जाकर उसने वनदेवी के समान पुत्र को गोद में लिये वृक्ष के निकुंज में बैठी मलयासुंदरी को देखा । वह चकित हो साहसकर पूछने लगा - 'भद्रे! तुम कौन हो? ऐसे जंगल में अकेली क्यों बैठी हो? तुम्हारी मुखाकृति से मालूम होता है कि तुम किसी उत्तम कुल में जन्मी हो। मैं बलसार नामक सार्थवाह हूं और सागर तिलक नामक शहर में रहता हूं। व्यापार के निमित्त प्रायः देश देशांतरों में विशेष घूमता रहता हूं । तुम मुझसे किसी तरह का भी संकोच मत करो। और इस नजीक के पड़ाव में मेरे साथ मेरे तंबू में चलो। मलयासुंदरी की रूपराशि को देखकर बलसार का मन विचलित हो गया था । अतः उसका दुःख दूर करने के लिए नहीं किन्तु अपनी कामवासना से प्रेरित ही वह मलयासुंदरी को अपने तंबू में ले जाना चाहता था । बलसार का भाव मलयासुंदरी समझ गयी थी। अतः उसने उसे उत्तर दिया - श्रीमान! मैं एक चांडाल की पुत्री हूं । माता पिता के साथ क्लेश होने के कारण क्रोधावेष में आकर मैं यहां भाग आयी हूं । अब मैं वापिस अपने घर चली जाऊंगी। आप जाइए, मैं आपके साथ हरगिज नहीं आऊंगी । सार्थवाह भी इस बात को ताड़ गया कि इसकी बोलचाल मुखाकृति से सचमुच यह ऊंच खानदान की स्त्री है। परंतु किसी कारणवश यह अपने आपको छिपाती है । वह बोला - सुंदरी! तुम मेरे साथ चलो! मैं तुम्हारा चांडालपन किसी के सामने प्रकट न करूंगा और जैसे तुम कहोगी वैसा ही करूंगा । इस तरह बोलता हुआ सार्थवाह मलयासुंदरी के नजदीक आ पहुंचा और जिस तरह कोई लुटेरा किसी का धन छीनकर ले जाता है, वैसे ही वह मलयासुंदरी की गोद से बच्चे को उठाकर अपने पड़ावकी तरफ चल दिया । मलयासुंदरी एक आपत्ति पर दूसरी आपत्ति आयी देख अधिक सावधान 159
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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