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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र कहां पर है? निर्वासित जीवन निमित्तज्ञ! - कुमार! आपकी पत्नी जंगल में है या बस्ती में, दुःख में है या सुख में, इत्यादि विस्तारवाली बातें, मैं नहीं जान सकता । तथापि यह मैं निश्चित रूप से कहता हूं कि वह सुंदरी जीवित है और उसकी आयुष्य आपसे लंबी है । यह बात सुनकर राजा के मन में शक पैदा हुआ कि उसे मैने निर्जन अटवी में भेजकर मरवा डाला है। तब फिर वह जीवित किस तरह रह सकती है? इस बात का निर्णय करने के लिए उसने फौरन उन सुभटों को बुलवाया जिनको मारने के लिए भेजा था । राजा - सुभटो! मैं तुम्हें यह बात पूछने से पहले अभयदान देता हूं, सच बोलो मैंने तुम्हें मलयासुंदरी को अटवी में ले जाकर मार डालने का आदेश दिया था । क्या तुमने सचमुच उसे ले जाकर मार डाला था ? सुभट - महाराज ! हम सच कहते हैं, आपकी आज्ञा पाकर, जब हम उसे रथ में बैठाकर, उस निर्जन अटवी में ले गये तब प्रातःकाल हो गया था । हमने उसे रथ से नीचे उतारा । उस समय उसका शरीर भय से कांप रहा था, आंखों से आंसु बह रहे थे । हमने उसकी सौम्य मुखमुद्रा को देख विचार किया कि महाराज को उसके राक्षसी होने का किसी ने यों ही भ्रम डाल दिया है । ऐसी सुंदर आकृति और सुलक्षणों वाली स्त्री कदापि राक्षसी नहीं हो सकती । इसीलिए महाराज की आज्ञानुसार यदि हम इसका वध करेंगे तो हमें निष्कारण ही दो प्राणियों की हत्या का पाप लगेगा। अतः यह समझकर कि इस हिंसक पशुओंवाली अटवी में वह किसी हिंसक पशु का शिकार बन जायगी, उसे जंगल में छोड़कर हम वापिस चले आये और हमने आपके समक्ष आकर भय से आपको उसके मारने का असत्य समाचार दिया था । राजा - (दीर्घ निश्वास ले पश्चात्तापपूर्वक) अहो! इन नौकरों में जो दया और बुद्धिमत्ता है उतनी भी दया और बुद्धि मुझ में नहीं ! धन्य है ऐसे दयालु और विचारशील मनुष्यों को । मेरे जैसे विचार एवं दयाहीन मनुष्यों को धिक्कार है । उन लोगों की प्रशंसाकर राजा ने सुभटों और निमित्तज्ञ को बहुत सा धन देकर 154
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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