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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र कठिन परीक्षा गले में डाल दिया । फिर वह पुरुष साक्षात् स्त्री बन गयी । उस वक्त भयभीत होकर आप लोगों ने धूप, पुष्प से सांप की पूजा की और उसे दूध पिलाया । फिर आपने उसे पर्वत की उसी गुफा में छुड़वा दिया। ये तमाम बातें आप सब को मालूम ही है। राजा - पुत्र! वह नवीन पुरुष हमारे देखते हुए अकस्मात् दिव्य रूपधारी स्त्री क्यों कर बन गयी? महाबल - 'पिताजी! मध्यरात्रि में रुदन करती हुई उसी स्त्री का शब्द सुनने के बाद उसके शब्दानुसार जाते समय (मलयासुंदरी की ओर इशारा कर) 'इस' आपकी पुत्रवधू को मैं अपने वस्त्राभूषण सहित पुरुष के रूप में केलों के बगीचे में छोड़ गया था । प्रातःकाल होने पर किसी तरह वह फिरती हुई यहां आ गयी और आपने उसकी घट सर्प का भयंकर दिव्य देकर कठिन परीक्षा ली। आपके महान् पुण्योदय से उस परीक्षा में विधाता ने मुझे ही सर्प के रूप में भेज दिया। मैंने उसे पहचानते ही गुटिका के प्रयोग से पुरुष रूप बनानेवाला उसके मस्तक पर जो तिलक किया हुआ था वह तिलक अपनी जीभ से मिटा दिया। उसके मिटते ही वह आप लोगों के समक्ष अपने स्वाभाविक रूप में वीरधवल राजा की पुत्री हो गयी । यह राजकुमार की पत्नी है, यह निश्चय होते ही राजा आदि तमाम मनुष्य आदर और स्नेह की दृष्टि से मलयासुंदरी के सन्मुख देखने लगे । इस समय महाबल ने मलयासुंदरी के सन्मुख देख कुछ इशारा किया जिससे तुरंत ही उठकर मलयासुंदरी ने अपने वस्त्र संकोचकर मर्यादापूर्वक श्वशुर और सास के चरणों को हाथ लगाकर नमस्कार किया। उन्होंने भी प्रसन्न हो उसे अखंड सौभाग्यवती रहो, यह आशीर्वाद दिया। इस वक्त अपने अपराध का पश्चात्ताप करते हुए महाराज शूरपाल के नेत्रों से अश्रु बहने लगे । मस्तक हिलाकर वह बोल उठा - ओ, कमनसीब शूरपाल! अपनी पुत्र वधू पर शत्रु के समान इतना अनुचित आचरण!! नगर के प्रधान नागरिक बोले - महाराज! इसमें आपका नहीं परंतु अज्ञानता का ही 130
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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