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________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र विचित्र स्वयंवर मुझे विषय प्रार्थना करने लगी । मैंने उससे कहा - भद्रे! मेरा एक अति प्रियमित्र है, वह रूप में साक्षात कामदेव के जैसा है और उसे तुम्हारे जैसी स्त्री की चाहना भी है । किसी कार्य के लिए वह आज गांव गया हुआ है। उसने मेरे साथ संकेत किया है कि आगामी रात्रि को गोलानदी के किनारे पर भट्टारिका देवी के मंदिर में मिलूंगा। इसीलिए अगर तुम्हारी मर्जी हो तो तुम वहां पर आना, वहां तुम दोनों का अच्छा संयोग मिल जायगा । कदाचित् किये हुए संकेतानुसार वह वहां पर न भी आया तो फिर हम तुम दोनों तो हैं ही। __कनकवती ने मुझसे पूछा - आप कौन हैं? और यहां किसलिए आये हैं? मैंने कहा हम क्षत्रियपुत्र हैं और देशांतर जाने के लिए घर से निकले हैं । रास्ते में यह शहर देखने के लिए मैं यहां ठहर गया हूं। मेरा कथन सत्य समझकर मेरे मित्र से मिलने के लिए उसने उत्सुकता बतलायी। अपने किये हुए कर्म का वर्णन करते हुए और उस कृत्य के कारण अपने ऊपर पड़े हुए संकट संबंधी वार्तालाप में उसने सारी रात्रि व्यतीत कर दी । सुबह होने पर मैंने उससे पूछा - सुंदरी! तुम्हारे पास कुछ वस्त्राभूषणादि भी हैं या नहीं? मुझ पर विश्वास और प्रीति रखती हुई कनकवती ने अपनी तमाम वस्तुयें मेरे पास लाकर रख दी । तलाश करने पर मुझे उनमें हार दिखायी न दिया। अतः मैंने फिर पूछा - क्या इतनी ही वस्तु तुम्हारे पास है? या और भी कुछ है? उसने कहा लक्ष्मीपूंज नामक एक हार और है, वह मैंने गुप्त रीति से एक जगह जमीन में दबाया हुआ है । वह स्थान पूछने पर वह बोली - यहां से कुछ दूरी पर एक शून्य खंडर घर है, उसके पास एक कीर्तिस्तंभ है, उसकी दीवार में मैंने उस हार को छिपाके रखा है। वहां पर मैं दिन में तो जा ही नहीं सकती, रात में भी राजपुरुषों के भय से बड़ी कठिनता से वहां जाया जा सकता है । यदि मेरी बतलायी हुई निशानी के अनुसार वहां जाकर आप उस हार को ला सकते हैं तो ले आइये फिर हम दोनों ही यहां से चले जायेंगे । अगर आप नहीं ला सकें तो आज ही संध्यासमय मैं स्वयं वहां जाकर उस हार को ले आऊंगी। इस प्रकार वार्तालाप कर मैं उसके पास से उठकर कमरे 107
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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