SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री महाबल मलयासुंदरी चरित्र विचित्र स्वयंवर मुझे कुछ देने के लिए कहा था । इसीलिए मुझे अब कुछ दो। मैंने इसे अच्छे वस्त्र, धन इत्यादि देना चाहा; परंतु यह धूर्त कुछ भी न लेकर मेरी जबान से निकले हुए 'कुछ दूंगी' इस शब्द को पकड़कर मुझसे कुछ मांगता है । परंतु मैं नहीं समझती कि कुछ किस वस्तु का नाम है? इसी कारण यह न तो खुद जाता है और न ही मुझे यहां से जाने देता है । प्रिय स्वामिन्! यह दशा देख मैंने विचार किया कि वेश्या इस वक्त आपत्ति में फंसी हुई है । यदि मैं इस संकट से इसका उद्धार करूं तो अवश्य ही मेरा निर्धारित कार्य जल्दी सिद्ध होगा । यह सोचकर मैंने मगधा को अपने पास बुलायी और उसके कान में एक बात सुनायी। फिर मैंने उन दोनों से कहा – 'जाओ इस समय तुम दोनों भोजन करो और तीसरे पहर मेरे पास आना मैं अवश्य ही तुम्हारे विवाद का फैसला कर दूंगा। महाबल - "प्यारी! उनका यह विवाद सचमुच ही बड़ा विषम था । तुमने किस तरह इसका समाधान किया?" मलया - स्वामिन्! सो मैं आपको सुनाती हूँ। मैं वहां तक के मार्ग परिश्रम से कुछ थक गयी थी अतः मैं वहां पर ही सो गयी । तीसरे पहर वे दोनों ही मेरे पास आ गये । मगधा ने मुझे उठाया । मैं गुप्तरीति से उससे देव मंदिर में एक घड़ा रखवाया और बहुत से लोगों को साक्षी रखकर कहा - देखो भाई! मैं अब तुम्हारे सामने इस मनुष्य को कुछ दिलाता हूँ। यह अपने वचन से पीछे न फिर जाय इसीलिए इसे मेरे किये हुए इन्साफ में आप लोग साक्षी रहें । यह बात उस धूर्त ने भी उपस्थित जनता के समक्ष अंगीकार कर ली । इस बात पर लोगों को भी बड़ा आश्चर्य था कि देखें यह नवयुवक इसे 'कुछ देकर' किस तरह फैसला करता है? मेरा इशारा पाकर मागधा ने उसे कहा कि इस मंदिर के उस कोने में एक घड़ा रखा है; उसमें एक चीज पड़ी है । उसे तुम ले आओ, फिर तुझे कुछ दिया जायगा। धूर्त ने वहां जाकर घड़े का ढकना उठाकर उसमें हाथ डाला । परंतु तुरंत ही फुकार मारता हुआ सर्प उसके हाथ को चिपट गया । तत्काल ही उसने घड़े से अपना हाथ पीछे खींच लिया । और चिल्लाकर वह बोल उठा अरे! इसमें तो 105
SR No.022652
Book TitleMahabal Malayasundari Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay, Jayanandsuri
PublisherEk Sadgruhastha
Publication Year
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy